Monday, September 8, 2014

दूसरा विध्वंशकारी वाक्यांश " मैंने सोचा। "

 "मैंने सोचा" भी समय बर्बाद करने वाला, उपयोगहीन और विध्वंशकारी वाक्यांश है। हममें से अनेक न तो  कोई जांच करते हैं ना ही  अपनी नजरें चारों ओर दौड़ाते  हैं और बिना किसी ठोस आधार के कुछ भी सोचकर आगे बढ़ जाते हैं, और जब ठोकर लगती है तो अफ़सोस के साथ कहते हैं, "ओह ! मैंने क्या सोचा था, और क्या हो गया ? "
मैंने अपनी बाइक की चोरी के बारे में एक लेख," OVERCONFIDENCE KILLS " लिखा है।
  मैं अपनी बाइक हर जगह अच्छे तरीके से लॉक करके साईरन प्रणाली को ऑन कर देता था, लेकिन मैं अपने बैंक परिसर में साईरन प्रणाली ऑन नहीं करता था क्योंकि मैं सोचता था कि मैं शाखा प्रबंधक हूँ, मुझे और मेरे बाइक को इलाके के सारे लोग पहचानते हैं। अतः कोई भी चोर मेरे शाखा परिसर से मेरा बाइक चुराने का साहस नहीं करेगा, लेकिन अफ़सोस एक काले शनिवार क़ो जब मैं शाखा कार्यालय से बाहर निकला तो मेरे बाइक का कहीं अता-पता नहीं था। कोई शातिर  चोर उसे लेकर रफूचक्कर हो गया था। मुझे जोरदार सदमा लगा, जब एटीएम गार्ड मेरे बाइक का रंग भी ठीक से नहीं बता पाया। मेरी यह सोच कि पूरे इलाके के लोग मेरी बाइक को पहचानते हैं, पूरी तरह आधारहीन और काल्पनिक निकली। लेकिन शायद साईरन प्रणाली ऑन करने की परेशानी से बचने के लिए मैंने यह सोच लिया था की इलाके के सारे लोग मेरी बाइक पहचानते हैं।
एक शुभ मंगलवार को मेरी मेम साहब ने ऑफिस जाते समय मुझे टिफिन बॉक्स नहीं दिया बताया," आज आपके ऑफिस में पार्टी है, अतः टिफिन नहीं बनाया है। मैंने मुस्कराकर  कहा," मैंने पार्टी के बारे में बताया नहीं, आपने पूछा नहीं तो फिर आपने पार्टी की बात कैसे सोच ली ? मेम साहब रक्षात्मक अंदाज में बोलीं ,"आज आपके बैंक में विशेष दिन है न, इसलिये मैंने सोच लिया।" उस दिन सचमुच विशेष दिन था, लेकिन सामिष स्टाफ सदस्यों ने पार्टी अगले दिन शिफ्ट कर दी थी।  अतः मैंने मेम साहब को टिफिन बनाने से मना नहीं किया था, मेरी धर्मपत्नी ने भी इस बारे में कुछ नहीं पूछा और पार्टी की बात सोचकर लंच नहीं बनाया। शायद वो किसी और काम में व्यस्त होंगी और उस दिन लंच बनाना नहीं चाहती होंगी। अतः उनके अवचेतन मन ने  "मैंने सोचा " वाक्यांश का सहारा लिया होगा।  खैर मैंने भी मौके का फायदा उठाया और वंशी स्वीट्स में गरमा-गरम और लजीज पाव-भाजी का मजा लिया। यद्यपि मनोवैज्ञानिक मुझ पर भी आरोप लगा सकते हैं कि मेरा अवचेतन मन पाव-भाजी का मजा लेना चाहता था, इसलिए पार्टी के अगले दिन होने की बात मैंने अपनी मैडम को नहीं बताई। 
एक बार हमलोगों ने ऋण नहीं चुकाने वाले ऋणियों को नोटिस भेजा। एक सीधे-सादे ऋणी ने आकर कहा,"साहब, मैंने सोचा कि मेरा ऋण माफ़ हो गया है, इसलिए मैंने ऋण नहीं चुकाया। मैंने पूछा," आपको जब बैंक ने ऋण चुकता प्रमाण-पत्र नहीं दिया तो आपने ऐसा कैसे सोच लिया? " शायद वह ऋणी अपने सीमित आय से ऋण का मासिक किश्त चुकाना नहीं चाहता था, अतः उसने भी 'मैंने सोचा' वाक्यांश का सहारा लिया। परिणामस्वरूप ऋण की राशि बहुत ज्यादा हो गयी थी और वह मुकदमे  के डर से नींदविहीन रातें और चैनविहीन दिन बिता रहा था। 
अतः "मैंने सोचा" भी "बस एक बार" की तरह समय बर्बाद करने वाला, आधारहीन और बकवास भरा वाक्यांश है। अपना भविष्य उज्जवल बनाने के लिए सपने में भी इससे दूर भागें।

  

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