Sunday, October 8, 2017

क्या निजीकरण है, सारी समस्याओं का समाधान ?

कुछ उत्साही लोग निजीकरण का जोर-शोर से समर्थन करते हैं।

लेकिन, रेल में निजीकरण का प्रयोग पूरी तरह असफल हो चुका है। निजीकरण के बाद रेलों में मनमानी वसूली के बावजूद घटिया भोजन की शिकायत तो आम बात है ही जब से बेड-रॉल निजी हाथों में गए हैं, उनकी गन्दगी की कहानियाँ भी कुख्यात होती रही हैं।

अनेक निजी व्यवस्था वाले शौचालयों में अनुचित वसूली के बावजूद दुर्गंध का राज होता है।

निजी विद्यालयों और अस्पतालों में किस तरह चार्ज वसूले जाते हैं। यह किसी से छुपा नहीं है।

निजीकरण अमरीका जैसे पूंजीवादी देशों में भी अपना भद्दा रूप दिखा चूका है। मंदी के दौरान लेमैन ब्रदर्स, ए  आई जी जैसी बड़ी कम्पनियाँ धड़ाम हो गईं। अमेरिकन फेडरल सरकार ने 180 बिलियन डॉलर की सहायता कर AIG को उबारा और उसका नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया। भारत में भी पूंजीपति अपने निजी कंपनियों के माध्यम से अरबों-खरबों के इंसेंटिव लेते रहे हैं, सरकारी बैंकों में पूंजी देते समय अनावश्यक शोर-शराबा होता है। पूंजीपतियों को इंसेंटिव मुफ्त में बांटे जाते हैं, जबकि सरकारी बैंक सामाजिक बैंकिंग सेवा भी देते हैं और  सरकार को  प्राप्त पूंजी पर डिविडेंड भी देते हैं।

निजी व्यवस्था ATM के केअर टेकरस का जम कर शोषण कर रही है। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार बैंकों से पूंजीपतियों को प्रति केअर टेकर जितनी राशि दी जाती है, केअर टेकर के जेब में उसकी आधी से भी कम राशि जाती है।

संविधान-निर्माताओं ने हमारे देश को कल्याणकारी राज्य का दर्जा दिया है। निजी कम्पनियों द्वारा किये जा रहे शोषण के कृत्य संविधान की भावनाओं के विपरीत हैं।

अनेक बार पूंजीपति लिमिटेड कम्पनियां बनाकर उनका दोहन करते हैं, फिर कम्पनियाँ दिवालिया घोषित कर दी जाती हैं, उसमें काम करने वाले सड़क पर आ जाते हैं और उनके बच्चे भूखे मरते हैं, जबकि पूंजीपतियों के ऐशो-आराम में कोई फर्क नहीं पड़ता है। हाल में दिवालिया हुई किंगफ़िशर एयरलाइन इसका उदाहरण है।

भारत में सैकड़ों निजी बैंक भी फेल हो चुके हैं। असफल होने वाले कुछ बैंकों के नाम हिंदुस्तान कमर्शियल बैंक लिमिटेड, नेदुंगड़ी बैंक लिमिटेड, बनारस बैंक लिमिटेड, ग्लोबल ट्रस्ट बैंक लिमिटेड आदि हैं। आम जनता की गाढ़ी कमाई को सुरक्षित करने के लिए सरकार ने इनका विलय सरकारी बैंकों में कर दिया। इस तरह पूंजीपतियों के कुव्यवस्था और मनमानी से डूबे निजी बैंकों का बोझ भी सरकारी बैंकों ने जनहित में ढोया।

 निजीकरण में स्वार्थी व्यक्ति येन-केन प्रकारेण ज्यादा से ज्यादा लाभ अर्जित करते हैं और यह निर्धनों के शोषण का जबरदस्त माध्यम है।

यदि कोई सरकारी कर्मचारी किसी से अनुचित राशि लेता है तो भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के सेक्शन 7  में
उस कर्मचारी को 3 से 7 वर्ष तक कारावास में रखने का प्रावधान है। लेकिन निजी व्यक्ति किसी से अनुचित वसूली करता है तो वह विजिलेंस या सी.बी.आई. के दायरे में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के अंतर्गत नहीं आता है और न ही उसके लिए इतने कड़े दंड का प्रावधान है। अतः निजीकरण उपरोक्त कारणों से लूट की खुली छूट देता है। 

Saturday, October 7, 2017

सुसंस्कारों का अभेद्य किला बनायें।




प्राचीन काल के सम्राट अपने राज्य के चारों ओर सुदृढ़ किले बनवाते थे। उनकी ऊँची और मजबूत दीवारों से टकराकर शत्रु के तीर निष्प्रभावी  हो जाते थे। प्रशिक्षित बहादुर लड़ाके हर पल किलों की सुरक्षा में तैनात रहते थे और शत्रु को देखते ही उसपर टूट पड़ते थे। 

इसी तरह नकारात्मक विचारों से बचने के लिए हमें भी अपने मस्तिष्क के चारों ओर सुसंस्कारों का अभेद्य किला बनाने की आवश्यकता है। हमें सकारात्मक विचारों वाले व्यक्तियों से मित्रता के साथ-साथ धार्मिक और प्रेरक साहित्य हमेशा पढ़ते रहना चाहिए ताकि शैतानी विचारों वाले विष बुझे तीर सुसंस्कारों से टकराकर निरर्थक हो जायें। 

सकारात्मक विचारों के लगातार प्रहार से भी नकारात्मक विचार निष्प्रभावी हो जाते हैं। अतः नकारात्मक विचार जब भी आक्रमण करें तो आप उन्हें निम्नलिखित शक्तिशाली  नारों से परास्त कर दें। 

1. वर्तमान साधेंगे, ब्रह्माण्ड सधेगा। 
2. मीरा ने पिया विष का प्याला, विष को अमृत कर डाला। 
3. अग्रसोची, सदा सुखी। 
4. जो हुआ अच्छा हुआ, जो होगा वह भी अच्छा ही होगा। 
5. जलता दीपक बनें और सभी सड़े विचार जला दें। 

मैं इन नारों को दुहराते हुए अपनी ऊँगली का एक पोर हल्के से दबाता रहता हूँ। यह एंकर जैसा कार्य करता है, अतः जब मैं नारे दुहराने की स्थिति में नहीं रहता हूँ तो सिर्फ ऊँगली का वह पोर हल्के से दबाता हूँ, अवचेतन मन संबंधित नारा स्वतः  दुहराने लगता है।
एंकरिंग के सिद्धांत का आप भी पूर्ण दोहन कर सकते हैं।