Sunday, October 9, 2016

अकल तो चाहिए, नकल को भी

एक अस्पताल के बाहर घोंचू लाल  की कफ़न की दुकान थी।  दुकान काफी दिनों से मंदी चल रही थी। दीपावली का त्यौहार नजदीक था। घोंचू लाल अपने सुपुत्र पोंचू लाल के साथ चिंतित रहते थे कि दिवाली का पर्व बिना आमदनी के कैसे मनाएंगे ? 

इसी बीच धन-तेरस आ धमका।  घोंचू लाल ने अपने सुपुत्र को दस रूपये दिए और बोले," बेटा, कम से कम एक चम्मच ही खरीदकर सगुण कर लो। पोंचू लाल बाजार गए।  वहाँ  रात  में  भी  दिन  जैसा  माहौल था।  पूरा  बाजार  रौशनी  से  जगमगा  रहा  था।  बर्तनों और गहनों की एक से एक दुकानें सजी थी। एक दुकान पर भारी भीड़ लगी थी। वहां एक बड़ा बर्तन खरीदने पर छोटा बर्तन मुफ्त मिल रहा था। पोंचू लाल ने भी एक बड़े चम्मच के साथ एक छोटा चम्मच लिया और ख़ुशी-ख़ुशी लौट आये। 

अपनी दुकान पर पहुंचकर उन्होंने उपरोक्त स्कीम अपने पिताश्री को बताई।  बाप-बेटे को यह आईडिया हिट लगा। अगले दिन वे दोनों भी अपनी दुकान पर जोर-जोर से चिल्ला रहे थे, " सेल-सेल ,महासेल !एक सयाने का के कफ़न के साथ बच्चे का कफ़न मुफ्त ले लो। "

देखते-देखते घोंचू और पोंचू की दुकान के चारों तरफ भीड़ लग गई। जिसके हाथ में जो भी आया, उसी से घोंचू और पोंचू को धोने लगा। जिनके  हाथ  में कुछ  नहीं  था , वे लप्पड़-झप्पड़  से  ही  काम  चला रहे थे। बाप-बेटे गिरते-पड़ते घर भागे। 

एक बात उन्हें आज तक समझ में नहीं आई कि जो स्कीम बर्तन-दुकान पर हिट थी, वही स्कीम  कफ़न - दुकान पर कैसे पिट गई?

अगर आपकी समझ में आये तो उन्हें जरूर बता दीजिएगे। 

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