Sunday, April 19, 2015

अगर दिल खोलते यारों के साथ

सुना है कि एक हार्ट हॉस्पिटल के ऑपरेशन-कक्ष  पर लिखा था ," अगर दिल खोलते  यारों के साथ तो खुलवाना न पड़ता औजारों के साथ "

एक दिन मैं काफी परेशान था। उसी समय मेरे एक मित्र अपनी समस्या-समाधान हेतु मेरे कक्ष में आये। उनकी बातें धैर्यपुर्वक सुनकर मैंने उन्हें आश्वासन दिया,"कुछ महीनों में मैं आपकी समस्या  सुलझा दूँगा।"
 परन्तु वे अपनी समस्या का शीघ्र समाधान चाह रहे थे, यद्यपि मुझे अविलम्ब कोई हल नजर नहीं आ रहा था।
 मैंने उन्हें समझाने कि पुरजोर कोशिश की, लेकिन दुर्भाग्यवश वे अपनी बात पर अड़े रहे । अंत में मेरा धैर्य जवाब दे गया और मैं उनसे लड़ बैठा।
बाद में मुझे महसूस हुआ कि  अगर मैं परेशान न होता तो शायद मैं धैर्य एवम वाकपटुता के साथ उन्हें इन्तज़ार करने के लिये मना लेता। यदि प्रारम्भ में ही मैं उन्हें अपनी मनःस्थिति के बारे में बता देता तो शायद वे उस दिन अनावश्यक दबाब न देते और अप्रियता टल जाती।  
एक बार मोटरसाइकिल से गिरने के कारण मेरे पाँव के घुटनों में हलकी चोटें आ गईं। मैं घर पर आराम कर रहा था, तभी मेरे मित्र राजीव जी ने फोन किया। मेरी बातों में गर्मजोशी नहीं थी और आवाज भी थकी-थकी थी। उन्होंने अविलंब ताड़ लिया कि मैं परेशान हूँ। मैंने उन्हें दुर्घटना के बारे में बताया तो वे मीठी झिड़की देने लगे," आपने पहले क्यों नहीं बताया ?" पहले पता हो जाता तो मैं आपसे अपने काम के बारे में आज बात नहीं करता।" राजीव जी की सलाह अमल करने लायक है।
  यदि आपकी मनःस्थिति किसी कारणवश  ठीक नहीं हो तो आप अपने दोस्तों और परिवार के सदस्यों को बता दें ताकि वे आपको आराम करने दें  और मानसिक सम्बल दें।  

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