Tuesday, March 28, 2023

FOCUS



                 Focus

The more I focus, the more I see.
The more I focus, the more I listen.
The more I focus, the more I feel.
The more I focus, the more I perform.
The more I focus, the more I enjoy.
The more I focus, the more I become successful in all the walks of life.

Monday, August 23, 2021

क्या स्वाद लेने की आदत बदली जा सकती है?

किसी को मिठाई अच्छी लगती है; कोई मटन का चहेता होता है। राजस्थान में दाल-बाटी चूरमा बड़े ही चाव से खाई जाती है। पंजाब में मक्के दी रोटी और सरसों दा साग का बोल-बाला है। महाराष्ट्र में पाव लोकप्रिय है तो तमिलनाडु में डोसा और इडली की धूम होती है। गुजरात में मीठी दाल खाई जाती है। बिहार में लोगों को नमकीन दाल प्रिय है।


1986 में मैं कोटा के एक होटल में 12 सप्ताह के लिए ठहरा था। एक सुबह मैं अपने कमरे में दही-चूरा-चीनी और आम बड़े चाव से खा रहा था। मेरे एक पंजाबी मित्र उसी समय पहुँचे। मैंने उन्हें भी खाने का न्योता दिया। वे हाथ जोड़कर बोले कि दही-चूरा-चीनी और आम मुँह में रखकर वे कंठ के नीचे भी नहीं ले जा पायेंगे। मैंने उनके लिये उनके लिये टोस्ट-आमलेट मँगाया।


  बचपन में हम जिस वातावरण में पले, वहाँ जो खाना खाया जाता था, हमें अच्छा लगने लगा।


बचपन में मैं अपने बुजुर्गों को चाय पीते देखता था। बड़ा होकर मैं भी मीठी चाय की चुस्की लेने लगा।


दुर्भाग्यवश जनवरी, 2014 में मुझे मधुमेह हो गया। चिकित्सक ने चीनी बंद कर दी। श्रीमती जी मुझे फीकी चाय परोसने लगीं। मन मसोसकर मैं फीकी चाय घोंटता था। प्रतीत होता था, "जीवन श्वेत-श्याम फ़िल्म हो गया है।" धीरे-धीरे मैं नये तौर-तरीकों में रम गया। अब मुझे मीठी चाय ही स्वादहीन लगती है।


अतः स्पष्ट है कि स्वाद एक आदत है और उसे बदला जा सकता है।


"सत्य के साथ मेरे प्रयोग" में महात्मा गांधी ने लिखा है कि उन्होंने मसालों को त्याग कर जब उबली हुई सब्जियां खाना प्रारंभ किया तो कुछ दिनों के बाद उन्हें उबली सब्जियां ही स्वादिष्ट लगने लगी।


अतः आप जब चाहें अपनी स्वास्थ्य की मांग के अनुसार स्वाद की नई आदतें बना सकते हैं।


प्रथम सप्ताह में आपको अधिक इच्छा-शक्ति पड़ेगी। जब अवांछित आदतों को करने की इच्छा आपको बेचैन करे तो रचनात्मक कार्यों में लग जाइये। रचनात्मक कार्यों के सफल निष्पादन से आपके शरीर में हैप्पी हार्मोन डोपामाइन मुक्त होगा, उपलब्धि प्राप्त करने की भावना आपके मन-मस्तिष्क को उत्साहपूर्ण कर देगी।


 यदि कोई उचित कार्य न हो तो सीढ़ियाँ चढ़िये या किसी अन्य  शारीरिक ऐक्टिविटी में लग जाईये। इससे आपके शरीर में हैप्पी होर्मोन एंडोर्फिन मुक्त होगा जो आपको बेचैनी से राहत देगा।


 दूसरे सप्ताह में आप का शरीर और मन नई आदतों के साथ तालमेल बैठाने लगेगा।


 तीसरा सप्ताह बीतने के बाद नई आदतें आपको अच्छी लगने लगेंगी।

 

छियासठ दिन से तीन महीने के बीच में सामान्यतया नई आदतें आपके स्वभाव का अभिन्न अंग बन जायेंगी। 




Sunday, May 10, 2020

उत्पादक आदतें कमायें; धमाकेदार सफलतायें चहुँओर पायें


प्रथम  खंड 



कुछ कुछ लगातार करते हैं,
उनके जीवन में चमत्कार होता है।
निरंतर प्रयास करते हैं,


उनका जय-जयकार होता है।




हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी  और वर्तमान  राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद निर्धन परिवारों से आने के बावजूद आज महान भारत के शीर्ष पदों को सुशोभित कर रहे हैं।


आपने निर्धन परिवार में जन्मे अनेक लोगों को अरबपति-खरबपति बनते सुना और देखा होगा । अनेक अरबपतियों के वंशजों को आपने दिवालिया बनते और जेल जाते भी सुना होगा।


उपरोक्त दृष्टांतों से यह वेपरलाइट के चमचमाते प्रकाश  की तरह स्पष्ट हो जाता है कि धन-सम्पत्ति या हीरे-जवाहिरातों के बिना भी आशातीत सफलता पाई जा सकती है और अयोग्य हाथों में आते ही बिल गेट्स का खजाना भी खाली हो जा सकता है ।


फिर वह कौन सी वस्तु है जो गरीबों को अप्रत्याशित सफलतायें दिला देती है और अरबपतियों के अनेक सन्तानों को सड़क पर खड़ा कर देती है।


यह अमूल्य वस्तु ईश्वर की सभी संतानों के लिए सर्वसुलभ है । यह अनमोल नगीना और कुछ नहीं है
यह तो बस आपकी आदतों का समूह है।

भाग्य-विधाता



आपकी आदतें ही आपकी भाग्य-विधाता और चरित्र-निर्माता होती हैं।

बुद्धिमता के साथ  परिश्रम करने की आदत आपको प्रतिभाशाली बना देती है, जरुरतमंदों की मदद करने की आदत आपको दानवीर  बना देती है, अपार धन कमाने और बचाने की आदत आपको धनवान बना देती है, तो अफीम खाने के आदी को अफ़ीमची और चोरी करने वालो को चोर कहकर भी पुकारा जाता है।

आपकी आदतें विद्युत उर्जा की तरह होती हैं। श्रेष्ठ और उत्पादक आदतें आपको सातवें आकाश पर पहुंचा देती हैं । वहीं हीन आदतें अनेक व्यक्तियों को पाताल की गर्त में भी ढकेल देती हैं।

हर्ष की बात


हर्ष की बात यह है कि श्रेष्ठ और उत्पादक आदतें लगाने के लिये आपको कोई बड़ी पूंजी निवेश नहीं करनी पड़ती है और न ही आजीवन कठोर परिश्रम करना पड़ता है।

तीन सप्ताहों में आप एक अच्छी आदत लगा सकते हैं।


प्रथम सप्ताह अत्यंत संघर्षपूर्ण होता है । इन दिनों आपको ज्यादा इच्छा-शक्ति का प्रयोग करना पड़ सकता है।


इच्छा-शक्ति के प्रयोग के साथ-साथ आप दवा कम्पनियों के पुराने नुस्खे को भी आजमां सकते हैं। अंगरेजी दवाईयों की गोलियां सामान्यतया अत्यंत कड़वी होती हैं। अतः वयस्क उन्हें मुख में रखकर जल से निगलते हैं। छोटे शिशुओं में गोलियों को निगलने की क्षमता नहीं होती है। अत दवा कम्पनियाँ शिशुओं के लिये ऐंटीबॉयोटिक का मीठा सिरप बना देती हैं।


आप भी स्पॉट-जाॅग्गिंग या प्राणायम करते समय अपना मनपसंद संगीत सुन सकते हैं। किसी कठिन कार्य को करते समय बीच-बीच में कृत्रिम रूप से मुस्कुराने का अभ्यास कर सकते हैं । इस तरह करने योग्य कार्यों और अपने मनपसंद कार्यों का टेम्पटेशन बंडलिंग  करके आप श्रेष्ठ और उत्पादक आदतें लगा सकते हैं।


प्रथम सप्ताह के पश्चात आपका तन-मन नई आदत से ताल-मेल बैठाने लगता है।
दूसरे सप्ताह में आप अपनी नई आदत के साथ सहज होने लगते हैं।
तीसरे सप्ताह में आपकी नई आदत आनंददायक बन जाती है।


धीरे-धीरे नई आदत आपके मनो-मस्तिष्क का हिस्सा बन जाती है। कई बार तो यह किसी नशा की तरह आपके रोम-रोम में प्रवेश कर जाती हैं। मेरे एक भैया को प्रति सुबह स्नान करने की आदत है। यदि किसी दिन उन्हें स्नान करने में देर हो जाती है तो उन्हें हलका सिर-दर्द होने लगता है ।


उपरोक्त विधि से आप जितनी श्रेष्ठ आदतें चाहें लगा सकते हैं और अवांछित आदतों से छुटकारा भी पा सकते हैं।

व्यवहारिक उदाहरण 


मुझे पान खाने की हानिकारक आदत थी। मेरे अधिकांश मित्र पान खाते थे। आपको यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि अक्टूबर, 2013 के पश्चात् मैंने आजतक कोई पान नहीं खाया है। पान खाने वाले मित्रों के बीच रहते हुए पान खाने की आदत छोड़ना सातवें आसमान पर जाकर तारे तोड़कर लाने के समान था।
इसकी रोचक कहानी मेरी रचना The Magical Repetition Killed My Bad Habit में दी गयी है। यह रचना इसी ब्लॉग में है। पान खाने की आदत छोड़ देने से स्वास्थ्य लाभ के साथ-साथ मैं एक लाख रुपये से अधिक अब तक बचा भी चुका हूँ।

आदत-उपस्थिति-पुस्तिका




मैं अत्यंत ही उत्साह के साथ कोई नई आदत लगाने की ठानता था और कुछ दिनों बाद उन्हें पूरी तरह भूल जाता था। दिन भर में यदि छोटे-बड़े बीसों काम करने हों तो उन सबको याद रखने के लिए मैं आदत- उपस्थिति-पुस्तिका का उपयोग करता हूँ । प्रत्येक शाम में मैं यह जांचता हूँ कि मैंने सारे काम किये हैं अथवा नहीं। जिस कार्य को मैं कर लेता हूँ उसके सामने वाली तिथि में _/ का चिन्ह लगाता हूँ और जो कार्य नहीं कर पाया उसके सामने x का चिन्ह लगाता हूँ। यह रेकॉर्ड रखना और अपनी उपलब्धियों को बढ़ते देखना अत्यंत आन्नददायक प्रतीत होता है । अब मैं अधिक कार्य-निष्पादन करता हूँ और आत्म-संतुष्टि के साथ निद्रा देवी को गले लगाता हूँ ।


अच्छी आदतें सहजता से लगाने और बुरी आदतों से आसानी के साथ छुटकारा पाने की अनेक प्रभावी विधियाँ श्री James Clear ने अपनी प्रख्यात पुस्तक The Atomic Habits में दी हैं।


मैं भी अगले महीने के द्वितीय सोमवार को सबेरे-सबेरे इस विषय पर दूसरी रचना प्रस्तुत करूँगा।
आप मेरे वॉट्सएप्प नंबर 9431013500 पर मुफ्त विचार-विमर्श भी कर सकते हैं।


यदि आप अपने जीवन में प्रत्येक मनचाही वस्तु प्राप्त कर रहे हैं तो आपको उपरोक्त लेख पढ़ने की कत्तई आवश्यकता नहीं है।
लेकिन, अगर आपने जो लक्ष्य बनाये हैं, वहाँ पहुँचने के लिए आप संघर्षरत हैं तो अपने अस्त्रों को अच्छी आदतों से अवश्य ही ज्यादा प्रभावी और कारगर बना लें क्योंकि


कुछ कुछ लगातार करते हैं,
उनके जीवन में चमत्कार होता है।
निरंतर प्रयास करते हैं,
उनका जय-जयकार होता है।

क्रमशः 

लेखक

उत्तम कुमार

सहयोगीगण 

अद्वितीय सुशांत
शिखा श्रीवास्तव
गौरव सुशांत 

Tuesday, January 29, 2019

कैसे टूटी मेरे मित्र के कूल्हे की हड्डी .

सिन्हा जी लम्बे-चौड़े और भारी-भरकम कद-काठी के इन्सान हैं. एक दिन वे बैंक जाने के लिए घर से अपनी १२५ cc की मोटर साइकिल से निकले. बैंक के मोटर-साइकिल स्टैंड में मोटरसाइकिल खड़ी करने के दौरान साइड स्टैंड गिराना भूल गये. परिणामस्वरूप बाइक का बैलेंस गडबडा गया. उनके दुर्भाग्य से उनका एक पैर गोबर पर पड़ गया था. बाइक का बैलेंस सम्हालते समय उनका पैर भी फिसल गया और लगभग ११० किलो की मोटरसाइकिल उनके शरीर पर गिर गयी. आस-पास के लोग दौडकर उन्हें मोटरसाइकिल के नीचे से निकाले. बेचारे सिन्हा जी उठ नहीं पा रहे थे और बुरी तरह दर्द से कराह रहे थे. स्टाफ सदस्य उन्हें झटपट होस्पिटल ले गये. डॉक्टर ने उनके कुल्हे का ऑपरेशन किया. बेचारे महीनों बिस्तर पर पड़े रहे. उसके बाद कई महीने छड़ी लेकर चलने को मजबूर हुए.
हमारे एक दूसरे साथी ठाकुर जी पारु से आ रहे थे. रास्ते में उन्हें चाय पीने की इच्छा हुई. अतः उन्होंने मोटरसाइकिल रोकी और ये श्रीमान भी साइड स्टैंड लगाना भूल गये. मोटरसाइकिल सौभाग्यवश इनसे दूर गिरी. वे अपनी बाइक उठाने के लिए नीचे झूके और बाइक उठाने लगे. उनकी उम्र लगभग ५५ वर्ष थी. यह 150 cc की बाइक भी वजनी थी. जैसे-जैसे वे बाइक उठाते गये, उनके रीढ़ की हड्डी करकराहट के साथ टूटती गयी.
मैं भी अपनी गेराज में बाइक लगा रहा था. शाम का समय था, अँधेरा हो चुका था. मैंने साइड स्टैंड को पैर से मारा. कट से आवाज आई, मैं समझा साइड स्टैंड नीचे गिर गया है. लेकिन, साइड स्टैंड आधा गिरकर फिर ऊपर आ गया था. मैनें बाइक लगा दिया. परिणामस्वरूप बाइक नीचे गिर गयी और मेरी दायीं कलाई चोटिल हो गयी.
बाद में अनेक मित्रों ने बताया कि ऐसा अक्सर होता है और अनेक लोग गिरकर घायल हो जाते हैं. दुर्घटनाओं का अध्ययन करने पर मैनें पाया है कि अधिकांश दुर्घटनाएं अनजान जगहों पर नहीं होती हैं, बल्कि जानी-पहचानी स्थानों पर होती हैं. अनेक व्यक्ति अपने ही बाथरूम में गिरकर अपने पैर तोड़ लेते हैं. मेरे एक सम्बन्धी प्रतिदिन रेलवे लाइन पार करके अपने घर जाते थे. ऐसा प्रतिदिन अनेकों बार करते थे, एक दिन वे मोबाइल पर बात करते लाइन पार कर रहे थे और एक ट्रेन की चपेट में आ गये और अपनी जान गवां बैठे.

अतः जो कार्य आप प्रतिदिन करते हैं, उसमें पूरी सावधानी बरतें. अधिकांश दुर्घटनाएं वहीं होती हैं. अनजान स्थानों पर तो हम आवश्यकता से ज्यादा सावधानी बरतते हैं.

Sunday, December 3, 2017

क्या बैंक-खातों का नोमिनी सम्पूर्ण राशि रख सकता है?


मेरे एक पुराने मित्र ने कल बताया कि एक बुजुर्ग ने बैंक में अपनी एक पोती की शादी के लिए फिक्स-डिपोजिट किया था. उन्होंने खाते में पोती को नोमिनी भी बना दिया था ताकि उनके देहांत के बाद रुपयों का उपयोग उसकी शादी में ही हो. दुर्भाग्यवश बुजुर्ग का देहांत हो गया है, लेकिन फिक्स-डिपोजिट की राशि में शेष कानूनी उत्तराधिकारियों ने भी दावा ठोक दिया है. मेरे मित्र पूरे मामले का कानूनी पक्ष जानना चाह रहे थे.


बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट के सेक्शन 45ZA(२) के अनुसार बैंक खातों में किसी एक व्यक्ति को नोमिनी बनाने का प्रावधान है. खातेदार अपने जीवन में नोमिनी बदल सकता है. यह अवधारणा है कि खातेदार की मृत्यु के बाद नोमिनी खाते की राशि का एकमात्र मालिक होता है.
कानून के अनुसार नोमिनी ट्रस्टी के रूप में खाते की राशि प्राप्त करता है और उसमें सारे कानूनी उत्तराधिकारियों का अधिकार होता है.
उच्चतम न्यायालय के विद्वान न्यायधिशों न्यायमूर्ति आफताब आलम तथा न्यायमूर्ति आर.एम.लोढ़ा की पीठ ने भी 2010 में सिविल अपील नंबर 1684/2004 राम चंदर तलवार बनाम देवेन्द्र कुमार तलवार में इसी आशय का फैसला सुनाया.
यद्यपि सक्षम न्यायालय द्वारा रोक लगाने के पहले यदि बैंक नोमिनी को भूगतान कर देता है तो वह अपने सारे दायित्यों से मुक्त हो जाता है.
अतः यदि आप अपनी सम्पत्ति का कोई हिस्सा विशेष उद्देश्य के लिए अपने किसी सम्बन्धी को देना चाहते हैं तो खाते में उसे नोमिनी बनाने के साथ-साथ एक वसीयत भी बनाकर उसमें इसका स्पष्ट वर्णन कर दीजिये.

क्लोनिंग से बचायें अपने डेबिट/क्रेडिट कार्ड


कुछ दिनों पहले समाचार-पत्र में पढ़ा था कि एक सज्जन का क्रेडिट कार्ड उनके पास सुरखित रखा था, फिर भी जालसाजों ने उनके खाते से रूपये 130,000 की खरीददारी कर ली थी. पुलिस-थाना में प्राथमिकी दर्ज की गयी थी. पुलिस छान-बीन में जुटी थी.
आखिर ऐसा कैसे सम्भव है? कार्ड आपके पर्स में है. आपने पिन किसी को बताया नहीं तो मार्केटिंग कैसे हो गयी?
ऐसा क्लोनिंग के द्वारा सम्भव है. सबसे पहले डॉली नामक एक भेड़ की क्लोनिंग हुई थी. डॉली के शक्ल-सूर्त की हुबहू दूसरी भेड़ क्लोनिंग करके बनायी गयी थी.
अब अरब टके का प्रश्न यह है कि जालसाज आपके कार्ड की क्लोनिंग कैसे करते हैं?
जब आप मार्केटिंग करने या रुपया निकलने जाते हैं तो वे स्किम्मर की मदद से आपका डाटा चोरी कर लेते हैं. यह स्किम्मर एटीएम के कार्ड-रीडर के साथ अत्यंत सावधानी के साथ सटा कर रख दिया जाता है और एक विडियो कैमरा की-बोर्ड  की ओर लगा दिया जाता है.जब आप एटीएम में कार्ड डालते हैं तो स्किम्मर में आपके कार्ड का सारा डाटा चला जाता है. फिर पिन डालते समय विडियो कैमरे में आपका पिन रिकॉर्ड हो जाता है. अब जालसाज लैपटॉप में आपका डाटा ट्रान्सफर करके सस्ते कार्ड पर  डुप्लीकेट एटीएम  बना लेते हैं. विडियो कैमरे की मदद से आपका पिन लेकर आपका खाता खाली कर देते हैं.
आपके कार्ड का डाटा कई बड़े-बड़े मॉल और दुकानों में भी चुराया जाता है.  ऐसे मॉल या दुकान में जब आप खरीददारी करते हैं तो पॉश-मशीन में कार्ड स्वैप करने के पहले वे उसे डेस्कटॉप, प्रिंटर या किसी अन्य स्थान पर स्वैप करके आपके कार्ड का सारा डाटा चुरा लेते हैं. वे संभवतः मार्केटिंग उद्देश्य से आपके डाटा की चोरी करते हैं. लेकिन उनकी नियत बिगड़ जाये तो वे भी आपके कार्ड की क्लोनिंग कर ले सकते हैं और सामन्यतया हमलोग बिना हाथ से ढके पासवर्ड डालते हैं, जिसे विडियो कैमरे द्वारा आसानी से चुराकर आपका खाता खाली कर सकते हैं.
क्लोनिंग से बचने के लिए आप निम्नलिखित सुझावों का पालन करके लाभ उठा सकते हैं.
  1. यह सुनिश्चित कर लें कि एटीएम के कार्ड-रीडर से सटाकर तो कुछ नहीं रखा गया है.
  2. एटीएम में जब भी पिन डालें, दूसरे हाथ से ढककर डालें.
  3. फूटपाथ पर या घर-घर घुमने वालों के पॉश-मशीन पर अपना कार्ड स्वैप नहीं करें.
  4. प्रत्येक SMS को ध्यान से पढ़ें. यदि जलसाज आपके पैन कार्ड या सिम का डुप्लीकेट निकालने का प्रयास करेंगे तो आपको SMS अवश्य भेजा जाएगा।
  5. यदि आपका कार्ड पॉश मशीन के अलावा दुकानदार अन्य कहीं स्वैप करे तो उससे इसका कारण पूछकर उसे हतोत्साहित करें। 
     

Sunday, October 8, 2017

क्या निजीकरण है, सारी समस्याओं का समाधान ?

कुछ उत्साही लोग निजीकरण का जोर-शोर से समर्थन करते हैं।

लेकिन, रेल में निजीकरण का प्रयोग पूरी तरह असफल हो चुका है। निजीकरण के बाद रेलों में मनमानी वसूली के बावजूद घटिया भोजन की शिकायत तो आम बात है ही जब से बेड-रॉल निजी हाथों में गए हैं, उनकी गन्दगी की कहानियाँ भी कुख्यात होती रही हैं।

अनेक निजी व्यवस्था वाले शौचालयों में अनुचित वसूली के बावजूद दुर्गंध का राज होता है।

निजी विद्यालयों और अस्पतालों में किस तरह चार्ज वसूले जाते हैं। यह किसी से छुपा नहीं है।

निजीकरण अमरीका जैसे पूंजीवादी देशों में भी अपना भद्दा रूप दिखा चूका है। मंदी के दौरान लेमैन ब्रदर्स, ए  आई जी जैसी बड़ी कम्पनियाँ धड़ाम हो गईं। अमेरिकन फेडरल सरकार ने 180 बिलियन डॉलर की सहायता कर AIG को उबारा और उसका नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया। भारत में भी पूंजीपति अपने निजी कंपनियों के माध्यम से अरबों-खरबों के इंसेंटिव लेते रहे हैं, सरकारी बैंकों में पूंजी देते समय अनावश्यक शोर-शराबा होता है। पूंजीपतियों को इंसेंटिव मुफ्त में बांटे जाते हैं, जबकि सरकारी बैंक सामाजिक बैंकिंग सेवा भी देते हैं और  सरकार को  प्राप्त पूंजी पर डिविडेंड भी देते हैं।

निजी व्यवस्था ATM के केअर टेकरस का जम कर शोषण कर रही है। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार बैंकों से पूंजीपतियों को प्रति केअर टेकर जितनी राशि दी जाती है, केअर टेकर के जेब में उसकी आधी से भी कम राशि जाती है।

संविधान-निर्माताओं ने हमारे देश को कल्याणकारी राज्य का दर्जा दिया है। निजी कम्पनियों द्वारा किये जा रहे शोषण के कृत्य संविधान की भावनाओं के विपरीत हैं।

अनेक बार पूंजीपति लिमिटेड कम्पनियां बनाकर उनका दोहन करते हैं, फिर कम्पनियाँ दिवालिया घोषित कर दी जाती हैं, उसमें काम करने वाले सड़क पर आ जाते हैं और उनके बच्चे भूखे मरते हैं, जबकि पूंजीपतियों के ऐशो-आराम में कोई फर्क नहीं पड़ता है। हाल में दिवालिया हुई किंगफ़िशर एयरलाइन इसका उदाहरण है।

भारत में सैकड़ों निजी बैंक भी फेल हो चुके हैं। असफल होने वाले कुछ बैंकों के नाम हिंदुस्तान कमर्शियल बैंक लिमिटेड, नेदुंगड़ी बैंक लिमिटेड, बनारस बैंक लिमिटेड, ग्लोबल ट्रस्ट बैंक लिमिटेड आदि हैं। आम जनता की गाढ़ी कमाई को सुरक्षित करने के लिए सरकार ने इनका विलय सरकारी बैंकों में कर दिया। इस तरह पूंजीपतियों के कुव्यवस्था और मनमानी से डूबे निजी बैंकों का बोझ भी सरकारी बैंकों ने जनहित में ढोया।

 निजीकरण में स्वार्थी व्यक्ति येन-केन प्रकारेण ज्यादा से ज्यादा लाभ अर्जित करते हैं और यह निर्धनों के शोषण का जबरदस्त माध्यम है।

यदि कोई सरकारी कर्मचारी किसी से अनुचित राशि लेता है तो भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के सेक्शन 7  में
उस कर्मचारी को 3 से 7 वर्ष तक कारावास में रखने का प्रावधान है। लेकिन निजी व्यक्ति किसी से अनुचित वसूली करता है तो वह विजिलेंस या सी.बी.आई. के दायरे में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के अंतर्गत नहीं आता है और न ही उसके लिए इतने कड़े दंड का प्रावधान है। अतः निजीकरण उपरोक्त कारणों से लूट की खुली छूट देता है। 

Saturday, October 7, 2017

सुसंस्कारों का अभेद्य किला बनायें।




प्राचीन काल के सम्राट अपने राज्य के चारों ओर सुदृढ़ किले बनवाते थे। उनकी ऊँची और मजबूत दीवारों से टकराकर शत्रु के तीर निष्प्रभावी  हो जाते थे। प्रशिक्षित बहादुर लड़ाके हर पल किलों की सुरक्षा में तैनात रहते थे और शत्रु को देखते ही उसपर टूट पड़ते थे। 

इसी तरह नकारात्मक विचारों से बचने के लिए हमें भी अपने मस्तिष्क के चारों ओर सुसंस्कारों का अभेद्य किला बनाने की आवश्यकता है। हमें सकारात्मक विचारों वाले व्यक्तियों से मित्रता के साथ-साथ धार्मिक और प्रेरक साहित्य हमेशा पढ़ते रहना चाहिए ताकि शैतानी विचारों वाले विष बुझे तीर सुसंस्कारों से टकराकर निरर्थक हो जायें। 

सकारात्मक विचारों के लगातार प्रहार से भी नकारात्मक विचार निष्प्रभावी हो जाते हैं। अतः नकारात्मक विचार जब भी आक्रमण करें तो आप उन्हें निम्नलिखित शक्तिशाली  नारों से परास्त कर दें। 

1. वर्तमान साधेंगे, ब्रह्माण्ड सधेगा। 
2. मीरा ने पिया विष का प्याला, विष को अमृत कर डाला। 
3. अग्रसोची, सदा सुखी। 
4. जो हुआ अच्छा हुआ, जो होगा वह भी अच्छा ही होगा। 
5. जलता दीपक बनें और सभी सड़े विचार जला दें। 

मैं इन नारों को दुहराते हुए अपनी ऊँगली का एक पोर हल्के से दबाता रहता हूँ। यह एंकर जैसा कार्य करता है, अतः जब मैं नारे दुहराने की स्थिति में नहीं रहता हूँ तो सिर्फ ऊँगली का वह पोर हल्के से दबाता हूँ, अवचेतन मन संबंधित नारा स्वतः  दुहराने लगता है।
एंकरिंग के सिद्धांत का आप भी पूर्ण दोहन कर सकते हैं।

Saturday, September 30, 2017

घात लगाए बैठी है, शैतान की नानी।

दुर्घटनाएँ अक्सर निश्चिंत को भयानक ढंग से फँसातीं हैं।

                                                       --- एंड्रू डैविडसन 

कदम-कदम पर शैतान की नानी बैठी है। कहाँ हम पर हमला करेगी, कह नहीं सकते। 
कुछ दिन पहले एक xylo को पुलिस ने राष्ट्रीय उच्च पथ 28  पर रोका। पुलिस के ५-६ जवान xylo की तलाशी ले रहे थे, तभी तेज गति से आ रही एक ट्रक ने  xylo को रौंद दिया, 5  लोग अविलम्ब दुनिया छोड़ गए। अनेक लोग गम्भीर हालात में अस्पताल में भर्ती थे।
मैं एक दिन बोरिंग रोड चौराहा पार कर रहा था। मोबाइल पर एक फ़ोन आया।  मेरे ध्यान बँट गया। इसी बीच एक कार ने मुझे धक्का मार दिया। कार की साइड-मिरर मेरे सिर के दाहिने हिस्से से टकराई। मैं बेहोश होकर सड़क पर गिर गया। पूरे शरीर में 5-7 जगह पर चोटें आईं। लगभग 20 दिन परेशान रहा। 6.59 बजे शाम में मैं ठीक-ठाक था। 7.03 बजे दुर्घटना में घायल हो चुका था। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना था कि कार की साइड मिरर मेरे सिर में टकराई थी तो काफी जोर की आवाज हुई थी और मैं बेहोश हो गया था। इस तरह तो मेरी जान सलामत रह गई, यह बड़ी बात थी।
पलक झपकते भयानक दुर्घटनाएं हो जाती हैं, क्योंकि शैतान की नानी हमें नुकसान पहुँचाने के लिए हमेशा घात लगाए बैठी रहती है। थोड़ी सी भी चूक हुई नहीं कि वह दुर्घटना के रूप में हमें अपने शैतानी आगोश में ले लेती है। 
अतः समय की मांग है कि हम दुर्घटनाओं के बारे में पढ़कर यह न सोचें कि ऐसा हमारे साथ नहीं होगा, बल्कि यह सोचें कि दुर्घटनाएँ कहीं भी और कभी भी हो सकती हैं और उनसे बचने के लिए हर पल न सिर्फ सतर्क रहें बल्कि दूरदर्शिता भी दिखायें। 



Sunday, August 27, 2017

अपना मस्तक ऊँचा रखें




   आप अपने व्यक्तित्व को दो प्रकार से  निखार सकते हैं।
1. अपने कार्यकलापों को बदल दें।
  
2. अपने विचारों को बदल दें। 

एक विश्वप्रसिद्ध कहावत है," एक सोच रोपें एक कार्य उपजेगा; एक कार्य रोपें, एक आदत पैदा होगी; एक आदत रोपें, एक चरित्र पायें और एक चरित्र रोपकर अपना भाग्य काट लें।

लेकिन, सोचने की महीन प्रक्रिया पर नियंत्रण रख पाना अत्यंत कठिन होता है। अतः बुद्धिमानगण अच्छी पुस्तकें पढ़ने और सकारात्मक लोगों के संग रहने की सलाह देते हैं। लेकिन, सही सोच वाले लोगों को विनाशकारी विचारों से रक्षा करने के लिए हम हर पल अपने पास नहीं रख सकते हैं।

नकारत्मक सोच जब हावी होते हैं तो हमारा मस्तक नीचे झुक जाता है।
अतः नकारात्मक विचारों के हमले को रोकने के लिए हमेशा सीना ताने रहें और मुस्कराते हुए मस्तक ऊँचा रखें।

मुस्कराहटयुक्त ऊँचा मस्तक न सिर्फ आपके अंग-विन्यास और आपके स्वास्थ्य को ठीक रखता है बल्कि  
अवसादग्रस्त विचारों को भी रोक देता है।

आपका ऊँचा मस्तक अबसेंटमिन्डेडनेस को हावी नहीं होने देता है।
आपका ऊँचा मस्तक आपको सकारात्मक विचारों से सराबोर रखता है।

 सकारात्मक विचारों को अनुकरणीय कार्य-कलाप में परिणत कर देने वालों का संसार अत्यंत सम्मान करता है।




Saturday, August 12, 2017

हमारे रंगीन चश्मे


'एथेंस का सत्यार्थी' के नायक ने जिद करके नँगा सत्य देखने का प्रयास किया। परिणामस्वरूप, उसकी आँखें चौन्धिया गयीं और वह अंधा हो गया।

सच पूछिए तो अपने बारे में नग्न सत्य हम भी नहीं बर्दाश्त कर पाते हैं। अतः अपनी आंखों पर रंगीन चश्मे लगाकर खुद को धोखा देते हैं।

अमिताभ बच्चन की सुप्रसिद्ध फ़िल्म शराबी याद कीजिये। शराब की अपनी बुरी लत को तर्कसंगत बनाने के लिए एक गाने में उन्होंने सारे संसार को नशे में धुत बता दिया।

प्रत्येक व्यक्ति अपनी आंखों के सामने पाक-साफ दिखना चाहता है। मसलन यदि मैं कामचोर हूँ तो कम से कम अपनी नज़रों के सामने गिरना नहीं चाहूँगा। अतः अपने-आप को ठगने के लिए मुझे एक रंगीन चश्मा पहनना होगा, जिस चश्मे से सारा विश्व कामचोर दिखेगा। लेकिन बात इतने पर समाप्त नहीं होती है। मुझे अपनी अदालत में दूसरों को कामचोर साबित करके दिखाना पड़ेगा, ताकि मैं अपनी कामचोरी को आम इंसानी कमजोरी मानकर तर्कसंगत साबित कर सकूँ।
यहीं से सारे झगड़ों की शुरुआत होती है। मैं अपने अधीनस्थों पर कामचोरी का आरोप लगाता हूँ, चाहे वे कितनी ही तन्मयता या अतन्मयता के साथ अपना कार्य कर रहे हों। बदले में वे भी मेरा प्रतिरोध प्रारम्भ कर देते हैं। फिर गुट बनते हैं। लोग एक दूसरे को नीचे दिखाने के लिये प्रयत्न-रत हो जाते हैं और अपने दिन की चैन और रात की नींद हराम कर लेते हैं।

परस्पर आरोप-प्रत्यारोप के बीच टीम-भावना की बलि चढ़ाई जाती है और परिवार, समाज और संस्थाएं इसका भारी मूल्य चुकाती हैं।
टीम-भावना के समाप्त होने के कारण हम निर्रथक झगड़ों में फंस के रह जाते हैं। परिणामस्वरूप, हम मनोवांछित सफलताएँ नहीं प्राप्त कर पाते हैं और जीवन के हमारे बहुत सारे अरमान अधूरे रह जाते हैं।

आखिर इस गम्भीर बीमारी का क्या इलाज हो सकता है?