Monday, August 23, 2021

स्वाद:- आदत है या नशा?

किसी को मिठाई अच्छी लगती है; कोई मटन का चहेता होता है। राजस्थान में दाल-बाटी चूरमा बड़े ही चाव से खाई जाती है। पंजाब में मक्के दी रोटी और सरसों दा साग का बोल-बाला है। महाराष्ट्र में पाव लोकप्रिय है तो तमिलनाडु में डोसा और इडली की धूम होती है। गुजरात में मीठी दाल खाई जाती है। बिहार में लोगों को नमकीन दाल प्रिय है।


1986 में मैं कोटा के एक होटल में 12 सप्ताह के लिए ठहरा था। एक सुबह मैं अपने कमरे में दही-चूरा-चीनी और आम बड़े चाव से खा रहा था। मेरे एक पंजाबी मित्र उसी समय पहुँचे। मैंने उन्हें भी खाने का न्योता दिया। वे हाथ जोड़कर बोले कि दही-चूरा-चीनी और आम मुँह में रखकर वे कंठ के नीचे भी नहीं ले जा पायेंगे। मैंने उनके लिये उनके लिये टोस्ट-आमलेट मँगाया।


  बचपन में हम जिस वातावरण में पले, वहाँ जो खाना खाया जाता था, हमें अच्छा लगने लगा।


बचपन में मैं अपने बुजुर्गों को चाय पीते देखता था। बड़ा होकर मैं भी मीठी चाय की चुस्की लेने लगा।


दुर्भाग्यवश जनवरी, 2014 में मुझे मधुमेह हो गया। चिकित्सक ने चीनी बंद कर दी। श्रीमती जी मुझे फीकी चाय परोसने लगीं। मन मसोसकर मैं फीकी चाय घोंटता था। प्रतीत होता था, "जीवन श्वेत-श्याम फ़िल्म हो गया है।" धीरे-धीरे मैं नये तौर-तरीकों में रम गया। अब मुझे मीठी चाय ही स्वादहीन लगती है।


अतः स्पष्ट है कि स्वाद एक आदत है और उसे बदला जा सकता है।


"सत्य के साथ मेरे प्रयोग" में महात्मा गांधी ने लिखा है कि उन्होंने मसालों को त्याग कर जब उबली हुई सब्जियां खाना प्रारंभ किया तो कुछ दिनों के बाद उन्हें उबली सब्जियां ही स्वादिष्ट लगने लगी।


अतः आप जब चाहें अपनी स्वास्थ्य की मांग के अनुसार स्वाद की नई आदतें बना सकते हैं।


प्रथम सप्ताह में आपको अधिक इच्छा-शक्ति पड़ेगी। जब अवांछित आदतों को करने की इच्छा आपको बेचैन करे तो रचनात्मक कार्यों में लग जाइये। रचनात्मक कार्यों के सफल निष्पादन से आपके शरीर में हैप्पी हार्मोन डोपामाइन मुक्त होगा, उपलब्धि प्राप्त करने की भावना आपके मन-मस्तिष्क को उत्साहपूर्ण कर देगी।


 यदि कोई उचित कार्य न हो तो सीढ़ियाँ चढ़िये या किसी अन्य  शारीरिक ऐक्टिविटी में लग जाईये। इससे आपके शरीर में हैप्पी होर्मोन एंडोर्फिन मुक्त होगा जो आपको बेचैनी से राहत देगा।


 दूसरे सप्ताह में आप का शरीर और मन नई आदतों के साथ तालमेल बैठाने लगेगा।


 तीसरा सप्ताह बीतने के बाद नई आदतें आपको अच्छी लगने लगेंगी।

 

छियासठ दिन से तीन महीने के बीच में सामान्यतया नई आदतें आपके स्वभाव का अभिन्न अंग बन जायेंगी।