कुछ
करने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति के
लिए इस दुनिया में कुछ भी असंभव
नहीं है ।
अब्राहम
लिंकन ।
जून 1989 में सबेरे 8 बजे मैं अपने
मित्र श्री राम
किशोर सिंह के
आवास पर एक आवश्यक कार्य-वश गया। उन्होंने सस्नेह मुझे बैठाकर चाय-नाश्ता कराया। मैं शिष्टाचारवश उनका कुशल-क्षेम पूछने लगा। उन्होंने भी उत्सुकता से मेरे आने का कारण पूछा। मैंने बताया,
"बस आपका हाल-चाल जानने आ गया हूँ।" इस पर
रामकिशोर बाबू खुलकर हँसते हुए बोले, "उत्तम जी, आप अकारण अपनी
गर्दन भी नहीं हिलाते हैं। "
उनकी बात
पर मैं भी अपनी हँसी रोक नहीं पाया। मैंने उन्हें अपने आने का
सही उद्देश्य बताया। उन्होंने भी अविलम्ब मेरा काम कर दिया।
मैं अपने
अनेक दोस्तों को व्यस्त
पाता हूँ। वे कहते हैं, "मैं काम में पूरी तरह से संलग्न हूँ। मैं पूछता हूँ, "क्या आप
अपने काम में व्यस्त हैं या फिर दिल लगाने के लिए जो भी सामने है, उसे करते
जा रहे हैं ?
मेरा प्रश्न
सुनकर कई मित्र
बगलें झाँकने लगते हैं। अंग्रेजी में एक कहावत भी है ," Busy for Nothing.".
कुछ
लोग तो " आये थे हरिभजन को ओटन
लागे कपास " वाली कहावत चरितार्थ कर
देते हैं अर्थात जिस लक्ष्य को ध्यान
में रखकर कार्य का शुभारम्भ करते हैं, बाद
में उसे ही मस्तिष्क से विस्मृत कर देते हैं।
अनेक लोग कठोर परिश्र्म करके भी सफलता से कोसों दूर रह जाते हैं क्योंकि उनकी दृष्टि महान अर्जुन की तरह चिड़िया की
आँख पर केंद्रित नहीं रहती हैं।
अतः अपने
कार्यालय में कोई भी काम करने के पहले अपने आप से पूछें कि क्या यह काम आपके जॉब
प्रोफाइल के अंतर्गत है और क्या इसे करने से आपके उच्चाधिकारियों की कानून सम्मत
अपेच्छाएं पूरी होंगी ? यदि जवाब "हाँ"
हो तभी वह काम करें। अपने जीवन में कोई काम करने से पहले सोचें कि क्या यह कार्य
आपको अपने जीवन के लक्ष्यों की ओर ले जायेगा ? यदि
उत्तर नकारात्मक हो तो कृपया ऐसे कार्य को दूर से ही अलविदा कह दें।
रेलगाड़ी की तरह पटरी पर लगातार अपने लक्ष्यों की ओर चलते रहें।
रास्ते में घना कोहरा आ सकता है या फिर आँधी आ सकती है। परिणामस्वरूप आपको अपनी
गति धीमी करनी पड़ सकती है , लेकिन अपने लक्ष्यों की ओर दृढ़ता के साथ बढ़ते रहें। अनुकूल परिस्थितियों में गति तेज कर दें, प्रतिकूल परिस्थितियों में गति धीमी कर दें, लेकिन निशाना वीर अर्जुन की तरह हमेशा अपने लक्ष्यों पर रखें। एक दिन सफलता अवश्य ही आपके क़दमों
को चूमेगी।
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