मेरे एक पुराने मित्र ने कल बताया कि एक बुजुर्ग ने बैंक में अपनी एक पोती की शादी के लिए फिक्स-डिपोजिट किया था. उन्होंने खाते में पोती को नोमिनी भी बना दिया था ताकि उनके देहांत के बाद रुपयों का उपयोग उसकी शादी में ही हो. दुर्भाग्यवश बुजुर्ग का देहांत हो गया है, लेकिन फिक्स-डिपोजिट की राशि में शेष कानूनी उत्तराधिकारियों ने भी दावा ठोक दिया है. मेरे मित्र पूरे मामले का कानूनी पक्ष जानना चाह रहे थे.
बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट के सेक्शन 45ZA(२) के अनुसार बैंक खातों में किसी एक व्यक्ति को नोमिनी बनाने का प्रावधान है. खातेदार अपने जीवन में नोमिनी बदल सकता है. यह अवधारणा है कि खातेदार की मृत्यु के बाद नोमिनी खाते की राशि का एकमात्र मालिक होता है.
कानून के अनुसार नोमिनी ट्रस्टी के रूप में खाते की राशि प्राप्त करता है और उसमें सारे कानूनी उत्तराधिकारियों का अधिकार होता है.
उच्चतम न्यायालय के विद्वान न्यायधिशों न्यायमूर्ति आफताब आलम तथा न्यायमूर्ति आर.एम.लोढ़ा की पीठ ने भी 2010 में सिविल अपील नंबर 1684/2004 राम चंदर तलवार बनाम देवेन्द्र कुमार तलवार में इसी आशय का फैसला सुनाया.
यद्यपि सक्षम न्यायालय द्वारा रोक लगाने के पहले यदि बैंक नोमिनी को भूगतान कर देता है तो वह अपने सारे दायित्यों से मुक्त हो जाता है.
अतः यदि आप अपनी सम्पत्ति का कोई हिस्सा विशेष उद्देश्य के लिए अपने किसी सम्बन्धी को देना चाहते हैं तो खाते में उसे नोमिनी बनाने के साथ-साथ एक वसीयत भी बनाकर उसमें इसका स्पष्ट वर्णन कर दीजिये.
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