Monday, February 24, 2025

ADVISE INDIRECTLY, TALK TACTFULLY

 Direct advice is like a double-edged sword.  
The ego of the receiver is often hurt, and the ego of the advisor is also injured on the rejection of his idea

Insult is further added to the injury if a dominant person dislikes the direct suggestion. Please recall the Hitopdesha tale "The birds and the Shivering Monkeys" in short.
Once some monkeys were shivering under a huge tree in the heavy rain and resultant cold. A kind-hearted small bird suggested them to build homes and live comfortably. The monkeys turned red at the unsolicited advice and destroyed all the birds' nest.
Thus suggesting directly to the superiors is just like committing suicide, although, even small children dislike to take orders.
 A boss seldom wants to give the impression that he acted on the juniors'advice. Therefore, we must avoid direct suggestions to a superior, especially in meetings.
As far as possible, suggestions should be indirect even to juniors.

I worked under an excellent Manager at Baniapur. The fair-complexioned tall Shri P.K.Singh often told stories about his colleague Shri Jaleshwar Singh. He related, "What a competent officer, Jaleshwar Babu was! He kept all his files neatly and tidily. His customer service was superb. He scanned the whole Don branch just after joining. He was a 24 Carat gold." In a nutshell, he appreciated desirable qualities of Shri Jaleshwar Singh before me, instead of directly advising me anything.

 I must confess, "I secretly longed to develop such qualities that would make Shri P.K.Singh appreciate me behind my back."

Asking a question is always better than declaring a conclusion.

   One gentleman called a senior officer to congratulate on the latter's promotion. During talks, the gentleman  expressed," You, too, belong to 1983 batch." My senior was genuinely flustered since he belonged to 1989 batch and his Wellwisher made him six years older. So the better alternative was to ask," You belong to which batch?"
 Once I wrote an article " Is Talking Similar To Driving?" 
Be as careful as a vehicle driver whose little carelessness may damage other vehicles.

Tuesday, March 28, 2023

FOCUS



                 Focus

The more I focus, the more I see.
The more I focus, the more I listen.
The more I focus, the more I feel.
The more I focus, the more I perform.
The more I focus, the more I enjoy.
The more I focus, the more I become successful in all the walks of life.

Wednesday, September 1, 2021

मैं क्यों बीमार था?


 बचपन से मैं तथाकथित रूप से बीमार रहता था।

 मुझे प्रायः बुखार आ जाता था और पेट में दर्द होता था। मैं हमेशा पेट डबडबाकर देखता रहता था कि यह फूला हुआ तो नहीं है।

 बीमारी मेरे लिए सम्पत्ति जैसी थी। यदि कोई काम नहीं करना होता था तो मैं बीमारी का बहाना बना देता था। लोगों के सामने हमेशा अपनी बीमारी के बारे में बात करके उनसे सहानुभूति पाता रहता था। पूरे क्षेत्र में पता था कि मैं बीमार रहता था।  मुझसे मिलते ही लोग सबसे पहले मेरी तबियत के बारे में पूछते थे।

 मुझे गला में भी दर्द हो जाता था। कभी-कभी तो जून की गर्मी में भी मेरे गला में इन्फेक्शन होकर 100 डिग्री सेंटीग्रेड से ज्यादा बुखार हो जाता था।

मेरे कुछ साथी खुलकर कहते थे कि मुझे शक की बीमारी है।

मैं उन्हें डॉक्टरों के पुर्जे दिखाकर तर्क करता था,"शक की बीमारी है तो गला में दर्द होकर बुखार कैसे हो जाता है?"

"मैं बीमार हूँ" का पोस्टर मैं अपने सीना और पीठ पर हमेशा लगाए रहता था।

 एक बार मुझे बुखार हुआ, लेकिन छुट्टी की कमी थी, अतः बैंक गया। मैंने एक साथी को अपने हिस्से का काम करने के लिए अनुरोध किया क्योंकि मैंने सुना था कि बुखार में शरीर पर अधिक जोर देने से फेफड़ा में पानी आ जाता है।

 मेरे साथी ने मेरा काम तो कर दिया, लेकिन उन्होंने मुझे काफी कुछ उपदेश सुना दिया।

  बीमार रहने की बात मेरे अवचेतन में कैसे बैठी? 

मैंने बचपन में सुना था कि बीमार लोग फल खाते हैं। 

बीमार होने पर बचपन में मुझे अपना मनपसंद खाना "पावरोटी, दूध और चीनी" भी मिलता था।

बीमार होने पर मुझे स्कूल भी नहीं जाना पड़ता था और घर का कोई काम भी नहीं करना पड़ता था।

अतः बीमार होना मेरे अवचेतन मन को लाभ का सौदा लगता था। लेकिन, मेरी अंतरात्मा बहाने बनाने के लिए मुझे नहीं कचोटे और न ही लोग मुझे बहानेबाज कहें, इसलिए मेरे अवचेतन मन ने शायद बीमारी के लक्षण पैदा कर दिए थे।

यद्यपि ऐसा मैं अकेला नहीं हूँ, अनेक लोग हैं जिन्हें सचमुच कोई बीमारी नहीं होती है। लेकिन उनमें बीमारी जैसे लक्षण होते हैं। सुयोग्य चिकित्सक भी कहते हैं कि उनके यहाँ जितने रोगी आते हैं, उनमें आधे से ज्यादा मनोवैज्ञानिक रूप से बीमार होते हैं। उनसे अच्छी तरह बात करने से और विटामिन आदि लिख देने से वे ठीक हो जाते हैं। अंग्रेजी में Placebo नामक एक शब्द है, जिसका मतलब होता है-" नकली या मनोवैज्ञानिक दवा"।

एक दिन मैंने निर्णय लिया कि अब मैं स्वस्थ बनूँगा। इसके बाद सहानुभूति पाने के लिए लोगों के निकट अपनी बीमारी का वर्णन करना मैंने बन्द कर दिया। बीमारी के कारण किसी काम को टालना भी मैंने बंद कर दिया। मैंने स्वास्थ्यवर्द्धक आदतें भी अपना ली।

 अब मैं स्वस्थ हो गया हूँ, लेकिन पुराने मित्र अभी भी मिलते ही चिंता के साथ मेरे स्वास्थ्य के बारे में पूछते हैं।







Monday, August 23, 2021

स्वाद:- आदत है या नशा?

किसी को मिठाई अच्छी लगती है; कोई मटन का चहेता होता है। राजस्थान में दाल-बाटी चूरमा बड़े ही चाव से खाई जाती है। पंजाब में मक्के दी रोटी और सरसों दा साग का बोल-बाला है। महाराष्ट्र में पाव लोकप्रिय है तो तमिलनाडु में डोसा और इडली की धूम होती है। गुजरात में मीठी दाल खाई जाती है। बिहार में लोगों को नमकीन दाल प्रिय है।


1986 में मैं कोटा के एक होटल में 12 सप्ताह के लिए ठहरा था। एक सुबह मैं अपने कमरे में दही-चूरा-चीनी और आम बड़े चाव से खा रहा था। मेरे एक पंजाबी मित्र उसी समय पहुँचे। मैंने उन्हें भी खाने का न्योता दिया। वे हाथ जोड़कर बोले कि दही-चूरा-चीनी और आम मुँह में रखकर वे कंठ के नीचे भी नहीं ले जा पायेंगे। मैंने उनके लिये उनके लिये टोस्ट-आमलेट मँगाया।


  बचपन में हम जिस वातावरण में पले, वहाँ जो खाना खाया जाता था, हमें अच्छा लगने लगा।


बचपन में मैं अपने बुजुर्गों को चाय पीते देखता था। बड़ा होकर मैं भी मीठी चाय की चुस्की लेने लगा।


दुर्भाग्यवश जनवरी, 2014 में मुझे मधुमेह हो गया। चिकित्सक ने चीनी बंद कर दी। श्रीमती जी मुझे फीकी चाय परोसने लगीं। मन मसोसकर मैं फीकी चाय घोंटता था। प्रतीत होता था, "जीवन श्वेत-श्याम फ़िल्म हो गया है।" धीरे-धीरे मैं नये तौर-तरीकों में रम गया। अब मुझे मीठी चाय ही स्वादहीन लगती है।


अतः स्पष्ट है कि स्वाद एक आदत है और उसे बदला जा सकता है।


"सत्य के साथ मेरे प्रयोग" में महात्मा गांधी ने लिखा है कि उन्होंने मसालों को त्याग कर जब उबली हुई सब्जियां खाना प्रारंभ किया तो कुछ दिनों के बाद उन्हें उबली सब्जियां ही स्वादिष्ट लगने लगी।


अतः आप जब चाहें अपनी स्वास्थ्य की मांग के अनुसार स्वाद की नई आदतें बना सकते हैं।


प्रथम सप्ताह में आपको अधिक इच्छा-शक्ति पड़ेगी। जब अवांछित आदतों को करने की इच्छा आपको बेचैन करे तो रचनात्मक कार्यों में लग जाइये। रचनात्मक कार्यों के सफल निष्पादन से आपके शरीर में हैप्पी हार्मोन डोपामाइन मुक्त होगा, उपलब्धि प्राप्त करने की भावना आपके मन-मस्तिष्क को उत्साहपूर्ण कर देगी।


 यदि कोई उचित कार्य न हो तो सीढ़ियाँ चढ़िये या किसी अन्य  शारीरिक ऐक्टिविटी में लग जाईये। इससे आपके शरीर में हैप्पी होर्मोन एंडोर्फिन मुक्त होगा जो आपको बेचैनी से राहत देगा।


 दूसरे सप्ताह में आप का शरीर और मन नई आदतों के साथ तालमेल बैठाने लगेगा।


 तीसरा सप्ताह बीतने के बाद नई आदतें आपको अच्छी लगने लगेंगी।

 

छियासठ दिन से तीन महीने के बीच में सामान्यतया नई आदतें आपके स्वभाव का अभिन्न अंग बन जायेंगी। 




Sunday, May 10, 2020

उत्पादक आदतें कमायें; धमाकेदार सफलतायें चहुँओर पायें


प्रथम  खंड 



कुछ कुछ लगातार करते हैं,
उनके जीवन में चमत्कार होता है।
निरंतर प्रयास करते हैं,


उनका जय-जयकार होता है।




हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी  और वर्तमान  राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद निर्धन परिवारों से आने के बावजूद आज महान भारत के शीर्ष पदों को सुशोभित कर रहे हैं।


आपने निर्धन परिवार में जन्मे अनेक लोगों को अरबपति-खरबपति बनते सुना और देखा होगा । अनेक अरबपतियों के वंशजों को आपने दिवालिया बनते और जेल जाते भी सुना होगा।


उपरोक्त दृष्टांतों से यह वेपरलाइट के चमचमाते प्रकाश  की तरह स्पष्ट हो जाता है कि धन-सम्पत्ति या हीरे-जवाहिरातों के बिना भी आशातीत सफलता पाई जा सकती है और अयोग्य हाथों में आते ही बिल गेट्स का खजाना भी खाली हो जा सकता है ।


फिर वह कौन सी वस्तु है जो गरीबों को अप्रत्याशित सफलतायें दिला देती है और अरबपतियों के अनेक सन्तानों को सड़क पर खड़ा कर देती है।


यह अमूल्य वस्तु ईश्वर की सभी संतानों के लिए सर्वसुलभ है । यह अनमोल नगीना और कुछ नहीं है
यह तो बस आपकी आदतों का समूह है।

भाग्य-विधाता



आपकी आदतें ही आपकी भाग्य-विधाता और चरित्र-निर्माता होती हैं।

बुद्धिमता के साथ  परिश्रम करने की आदत आपको प्रतिभाशाली बना देती है, जरुरतमंदों की मदद करने की आदत आपको दानवीर  बना देती है, अपार धन कमाने और बचाने की आदत आपको धनवान बना देती है, तो अफीम खाने के आदी को अफ़ीमची और चोरी करने वालो को चोर कहकर भी पुकारा जाता है।

आपकी आदतें विद्युत उर्जा की तरह होती हैं। श्रेष्ठ और उत्पादक आदतें आपको सातवें आकाश पर पहुंचा देती हैं । वहीं हीन आदतें अनेक व्यक्तियों को पाताल की गर्त में भी ढकेल देती हैं।

हर्ष की बात


हर्ष की बात यह है कि श्रेष्ठ और उत्पादक आदतें लगाने के लिये आपको कोई बड़ी पूंजी निवेश नहीं करनी पड़ती है और न ही आजीवन कठोर परिश्रम करना पड़ता है।

तीन सप्ताहों में आप एक अच्छी आदत लगा सकते हैं।


प्रथम सप्ताह अत्यंत संघर्षपूर्ण होता है । इन दिनों आपको ज्यादा इच्छा-शक्ति का प्रयोग करना पड़ सकता है।


इच्छा-शक्ति के प्रयोग के साथ-साथ आप दवा कम्पनियों के पुराने नुस्खे को भी आजमां सकते हैं। अंगरेजी दवाईयों की गोलियां सामान्यतया अत्यंत कड़वी होती हैं। अतः वयस्क उन्हें मुख में रखकर जल से निगलते हैं। छोटे शिशुओं में गोलियों को निगलने की क्षमता नहीं होती है। अत दवा कम्पनियाँ शिशुओं के लिये ऐंटीबॉयोटिक का मीठा सिरप बना देती हैं।


आप भी स्पॉट-जाॅग्गिंग या प्राणायम करते समय अपना मनपसंद संगीत सुन सकते हैं। किसी कठिन कार्य को करते समय बीच-बीच में कृत्रिम रूप से मुस्कुराने का अभ्यास कर सकते हैं । इस तरह करने योग्य कार्यों और अपने मनपसंद कार्यों का टेम्पटेशन बंडलिंग  करके आप श्रेष्ठ और उत्पादक आदतें लगा सकते हैं।


प्रथम सप्ताह के पश्चात आपका तन-मन नई आदत से ताल-मेल बैठाने लगता है।
दूसरे सप्ताह में आप अपनी नई आदत के साथ सहज होने लगते हैं।
तीसरे सप्ताह में आपकी नई आदत आनंददायक बन जाती है।


धीरे-धीरे नई आदत आपके मनो-मस्तिष्क का हिस्सा बन जाती है। कई बार तो यह किसी नशा की तरह आपके रोम-रोम में प्रवेश कर जाती हैं। मेरे एक भैया को प्रति सुबह स्नान करने की आदत है। यदि किसी दिन उन्हें स्नान करने में देर हो जाती है तो उन्हें हलका सिर-दर्द होने लगता है ।


उपरोक्त विधि से आप जितनी श्रेष्ठ आदतें चाहें लगा सकते हैं और अवांछित आदतों से छुटकारा भी पा सकते हैं।

व्यवहारिक उदाहरण 


मुझे पान खाने की हानिकारक आदत थी। मेरे अधिकांश मित्र पान खाते थे। आपको यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि अक्टूबर, 2013 के पश्चात् मैंने आजतक कोई पान नहीं खाया है। पान खाने वाले मित्रों के बीच रहते हुए पान खाने की आदत छोड़ना सातवें आसमान पर जाकर तारे तोड़कर लाने के समान था।
इसकी रोचक कहानी मेरी रचना The Magical Repetition Killed My Bad Habit में दी गयी है। यह रचना इसी ब्लॉग में है। पान खाने की आदत छोड़ देने से स्वास्थ्य लाभ के साथ-साथ मैं एक लाख रुपये से अधिक अब तक बचा भी चुका हूँ।

आदत-उपस्थिति-पुस्तिका




मैं अत्यंत ही उत्साह के साथ कोई नई आदत लगाने की ठानता था और कुछ दिनों बाद उन्हें पूरी तरह भूल जाता था। दिन भर में यदि छोटे-बड़े बीसों काम करने हों तो उन सबको याद रखने के लिए मैं आदत- उपस्थिति-पुस्तिका का उपयोग करता हूँ । प्रत्येक शाम में मैं यह जांचता हूँ कि मैंने सारे काम किये हैं अथवा नहीं। जिस कार्य को मैं कर लेता हूँ उसके सामने वाली तिथि में _/ का चिन्ह लगाता हूँ और जो कार्य नहीं कर पाया उसके सामने x का चिन्ह लगाता हूँ। यह रेकॉर्ड रखना और अपनी उपलब्धियों को बढ़ते देखना अत्यंत आन्नददायक प्रतीत होता है । अब मैं अधिक कार्य-निष्पादन करता हूँ और आत्म-संतुष्टि के साथ निद्रा देवी को गले लगाता हूँ ।


अच्छी आदतें सहजता से लगाने और बुरी आदतों से आसानी के साथ छुटकारा पाने की अनेक प्रभावी विधियाँ श्री James Clear ने अपनी प्रख्यात पुस्तक The Atomic Habits में दी हैं।


मैं भी अगले महीने के द्वितीय सोमवार को सबेरे-सबेरे इस विषय पर दूसरी रचना प्रस्तुत करूँगा।
आप मेरे वॉट्सएप्प नंबर 9431013500 पर मुफ्त विचार-विमर्श भी कर सकते हैं।


यदि आप अपने जीवन में प्रत्येक मनचाही वस्तु प्राप्त कर रहे हैं तो आपको उपरोक्त लेख पढ़ने की कत्तई आवश्यकता नहीं है।
लेकिन, अगर आपने जो लक्ष्य बनाये हैं, वहाँ पहुँचने के लिए आप संघर्षरत हैं तो अपने अस्त्रों को अच्छी आदतों से अवश्य ही ज्यादा प्रभावी और कारगर बना लें क्योंकि


कुछ कुछ लगातार करते हैं,
उनके जीवन में चमत्कार होता है।
निरंतर प्रयास करते हैं,
उनका जय-जयकार होता है।

क्रमशः 

लेखक

उत्तम कुमार

सहयोगीगण 

अद्वितीय सुशांत
शिखा श्रीवास्तव
गौरव सुशांत 

Sunday, November 3, 2019

क्या मधुमेह ठीक हो सकता है?



13 जून 2019 को चिकित्सा हेतु मैं मोहन डायबिटीज स्पेशलिटी सेन्टर, मल्लेश्वरम, बंगलुरू गया था। वहाँ डॉ प्रवीण जी. ने मुझे अपने पेट का घेरा कम करने के लिए कहा। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जैसे-जैसे घेरा कम करते जाएंगे, मधुमेह, यूरिक एसिड आदि की गोलियां भी घटती जाएंगी। 13 जून 2019 में मेरा पेट का घेरा 110 सेंटीमीटर था, यह अब 98 सेंटीमीटर है। इस बीच स्थानीय चिकित्सक ने मधुमेह की गोलियां भी घटा दी हैं।
अनेक चिकित्सक मानते हैं कि टाइप 2 मधुमेह का प्रमुख कारण शरीर में वसा की अधिकता होती है। अधिक वसा मसल्स के ऊपर भी बैठी रहती है। यह पैंक्रियास से उत्पन्न इन्सुलिन को ठीक से काम नहीं करने देती है। फलस्वरूप पैंक्रियास और ज्यादा इन्सुलिन उतपन्न करता है, लेकिन शरीर में वसा की मात्रा क्रमशः बढ़ती जाती है और पैंक्रियास जितना भी इन्सुलिन निकालता है, वह कम पड़ जाता है तो मधुमेह के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। फिर पीड़ित चिकित्सक के पास जाते हैं। चिकित्सक दवाई देकर पैंक्रियास को और ज्यादा इंसुलिन निकालने के लिए बाध्य करते हैं। रोगी को चीनी और तेल आदि नहीं खाने के लिए भी सलाह दिया जाता है, लेकिन ज्यादा जोर मीठी वस्तुएं नहीं खाने पर रहता है। फलस्वरूप मसल्स पर वसा की परत बढ़ती जाती है। पैंक्रियास द्वारा अब भी निकाली गई इन्सुलिन कम पड़ जाती है। पैंक्रियास को दवा की मात्रा बढ़ाकर और ज्यादा इन्सुलिन निकालने के लिए बाध्य किया जाता है और अंत में यह थककर जवाब दे देता है।
अतः शरीर में वसा की मात्रा कम होने से शरीर में उत्पन्न इन्सुलिन पर्याप्त कार्य करने लग सकता है।

डॉ प्रमोद पाठक, डॉ नन्दिता साह (नारी शक्ति पुरस्कार प्राप्त) आदि अनेक चिकित्सकों का विश्वास है कि मधुमेह को समुचित खान-पान और व्यायाम द्वारा ठीक किया जा सकता है। ये मुख्यतः रिफाइंड चीजों तथा दूध आदि का सेवन बंद करने और पर्याप्त व्यायाम तथा ध्यान आदि की सलाह देते हैं।

मैं दावत बासमती ब्राउन चावल प्रति दिन खाता हूँ। किशमिश, खजूर आदि का भी उचित मात्रा में सेवन करता हूँ। मेरा प्रयास रहता है कि भोजन में कार्बोहाइड्रेट 25 प्रतिशत, प्रोटीन 25 प्रतिशत तथा हरी सब्जियां सलाद आदि 50 प्रतिशत रखूँ। Freedom from Diabetes app पर तथा पुस्तक में दिए गए तेल/चीनी रहित अनेक स्वादिष्ट व्यंजनों का सेवन करता हूँ। कुछ दिनों पहले चीनीरहित चॉक्लेट आइसक्रीम का भी मैंने मजा लिया।
मैं प्रतिदिन प्राणायाम और कसरत करता हूँ। प्रति सुबह हरी पत्तियों, फल और गर्म मसालों (दाल चीनी आदि) से युक्त स्मूथी मैं पीता हूँ। ग्लूकोमीटर से चीनी हमेशा जांचता रहता हूँ ताकि यह बहुत कम न हो जाये। इन उपायों से मेरे एसिडिटी में भी काफी लाभ हुआ है।
पिछले वर्ष अनेक अंग्रेजी चिकित्सकों से सलाह लेकर मैंने उच्च रक्तचाप की गोली छोड़ी थी। ईश्वर की कृपा से प्रति सप्ताह जांच में यह कभी बढ़ी नहीं मिली। अब प्रतीत होता है कि मधुमेह और एसिडिटी की गोलियों से मुक्त होने का समय शीघ्र आने वाला है।



नोट: 1. अधिक जानकारी के लिए डॉ प्रमोद पाठक द्वारा लिखित 'Freedom From Diabetes' पुस्तक पढ़ें। यह अमेज़न पर हिंदी में भी उपलब्ध है।
ये मेरे अनुभव हैं। कोई भी प्रयोग योग्य चिकित्सक की देख-रेख में ही करें क्योंकि उपरोक्त विधियों से मधुमेह बहुत तेजी से घट सकता है।
2. उपयोगी वेबसाइटें: i) sharan-india.org
ii) freedomfromdiabetes.org

Tuesday, January 29, 2019

कैसे टूटी मेरे मित्र के कूल्हे की हड्डी .

सिन्हा जी लम्बे-चौड़े और भारी-भरकम कद-काठी के इन्सान हैं. एक दिन वे बैंक जाने के लिए घर से अपनी १२५ cc की मोटर साइकिल से निकले. बैंक के मोटर-साइकिल स्टैंड में मोटरसाइकिल खड़ी करने के दौरान साइड स्टैंड गिराना भूल गये. परिणामस्वरूप बाइक का बैलेंस गडबडा गया. उनके दुर्भाग्य से उनका एक पैर गोबर पर पड़ गया था. बाइक का बैलेंस सम्हालते समय उनका पैर भी फिसल गया और लगभग ११० किलो की मोटरसाइकिल उनके शरीर पर गिर गयी. आस-पास के लोग दौडकर उन्हें मोटरसाइकिल के नीचे से निकाले. बेचारे सिन्हा जी उठ नहीं पा रहे थे और बुरी तरह दर्द से कराह रहे थे. स्टाफ सदस्य उन्हें झटपट होस्पिटल ले गये. डॉक्टर ने उनके कुल्हे का ऑपरेशन किया. बेचारे महीनों बिस्तर पर पड़े रहे. उसके बाद कई महीने छड़ी लेकर चलने को मजबूर हुए.
हमारे एक दूसरे साथी ठाकुर जी पारु से आ रहे थे. रास्ते में उन्हें चाय पीने की इच्छा हुई. अतः उन्होंने मोटरसाइकिल रोकी और ये श्रीमान भी साइड स्टैंड लगाना भूल गये. मोटरसाइकिल सौभाग्यवश इनसे दूर गिरी. वे अपनी बाइक उठाने के लिए नीचे झूके और बाइक उठाने लगे. उनकी उम्र लगभग ५५ वर्ष थी. यह 150 cc की बाइक भी वजनी थी. जैसे-जैसे वे बाइक उठाते गये, उनके रीढ़ की हड्डी करकराहट के साथ टूटती गयी.
मैं भी अपनी गेराज में बाइक लगा रहा था. शाम का समय था, अँधेरा हो चुका था. मैंने साइड स्टैंड को पैर से मारा. कट से आवाज आई, मैं समझा साइड स्टैंड नीचे गिर गया है. लेकिन, साइड स्टैंड आधा गिरकर फिर ऊपर आ गया था. मैनें बाइक लगा दिया. परिणामस्वरूप बाइक नीचे गिर गयी और मेरी दायीं कलाई चोटिल हो गयी.
बाद में अनेक मित्रों ने बताया कि ऐसा अक्सर होता है और अनेक लोग गिरकर घायल हो जाते हैं. दुर्घटनाओं का अध्ययन करने पर मैनें पाया है कि अधिकांश दुर्घटनाएं अनजान जगहों पर नहीं होती हैं, बल्कि जानी-पहचानी स्थानों पर होती हैं. अनेक व्यक्ति अपने ही बाथरूम में गिरकर अपने पैर तोड़ लेते हैं. मेरे एक सम्बन्धी प्रतिदिन रेलवे लाइन पार करके अपने घर जाते थे. ऐसा प्रतिदिन अनेकों बार करते थे, एक दिन वे मोबाइल पर बात करते लाइन पार कर रहे थे और एक ट्रेन की चपेट में आ गये और अपनी जान गवां बैठे.

अतः जो कार्य आप प्रतिदिन करते हैं, उसमें पूरी सावधानी बरतें. अधिकांश दुर्घटनाएं वहीं होती हैं. अनजान स्थानों पर तो हम आवश्यकता से ज्यादा सावधानी बरतते हैं.

Sunday, December 3, 2017

क्या बैंक-खातों का नोमिनी सम्पूर्ण राशि रख सकता है?


मेरे एक पुराने मित्र ने कल बताया कि एक बुजुर्ग ने बैंक में अपनी एक पोती की शादी के लिए फिक्स-डिपोजिट किया था. उन्होंने खाते में पोती को नोमिनी भी बना दिया था ताकि उनके देहांत के बाद रुपयों का उपयोग उसकी शादी में ही हो. दुर्भाग्यवश बुजुर्ग का देहांत हो गया है, लेकिन फिक्स-डिपोजिट की राशि में शेष कानूनी उत्तराधिकारियों ने भी दावा ठोक दिया है. मेरे मित्र पूरे मामले का कानूनी पक्ष जानना चाह रहे थे.


बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट के सेक्शन 45ZA(२) के अनुसार बैंक खातों में किसी एक व्यक्ति को नोमिनी बनाने का प्रावधान है. खातेदार अपने जीवन में नोमिनी बदल सकता है. यह अवधारणा है कि खातेदार की मृत्यु के बाद नोमिनी खाते की राशि का एकमात्र मालिक होता है.
कानून के अनुसार नोमिनी ट्रस्टी के रूप में खाते की राशि प्राप्त करता है और उसमें सारे कानूनी उत्तराधिकारियों का अधिकार होता है.
उच्चतम न्यायालय के विद्वान न्यायधिशों न्यायमूर्ति आफताब आलम तथा न्यायमूर्ति आर.एम.लोढ़ा की पीठ ने भी 2010 में सिविल अपील नंबर 1684/2004 राम चंदर तलवार बनाम देवेन्द्र कुमार तलवार में इसी आशय का फैसला सुनाया.
यद्यपि सक्षम न्यायालय द्वारा रोक लगाने के पहले यदि बैंक नोमिनी को भूगतान कर देता है तो वह अपने सारे दायित्यों से मुक्त हो जाता है.
अतः यदि आप अपनी सम्पत्ति का कोई हिस्सा विशेष उद्देश्य के लिए अपने किसी सम्बन्धी को देना चाहते हैं तो खाते में उसे नोमिनी बनाने के साथ-साथ एक वसीयत भी बनाकर उसमें इसका स्पष्ट वर्णन कर दीजिये.

क्लोनिंग से बचायें अपने डेबिट/क्रेडिट कार्ड


कुछ दिनों पहले समाचार-पत्र में पढ़ा था कि एक सज्जन का क्रेडिट कार्ड उनके पास सुरखित रखा था, फिर भी जालसाजों ने उनके खाते से रूपये 130,000 की खरीददारी कर ली थी. पुलिस-थाना में प्राथमिकी दर्ज की गयी थी. पुलिस छान-बीन में जुटी थी.
आखिर ऐसा कैसे सम्भव है? कार्ड आपके पर्स में है. आपने पिन किसी को बताया नहीं तो मार्केटिंग कैसे हो गयी?
ऐसा क्लोनिंग के द्वारा सम्भव है. सबसे पहले डॉली नामक एक भेड़ की क्लोनिंग हुई थी. डॉली के शक्ल-सूर्त की हुबहू दूसरी भेड़ क्लोनिंग करके बनायी गयी थी.
अब अरब टके का प्रश्न यह है कि जालसाज आपके कार्ड की क्लोनिंग कैसे करते हैं?
जब आप मार्केटिंग करने या रुपया निकलने जाते हैं तो वे स्किम्मर की मदद से आपका डाटा चोरी कर लेते हैं. यह स्किम्मर एटीएम के कार्ड-रीडर के साथ अत्यंत सावधानी के साथ सटा कर रख दिया जाता है और एक विडियो कैमरा की-बोर्ड  की ओर लगा दिया जाता है.जब आप एटीएम में कार्ड डालते हैं तो स्किम्मर में आपके कार्ड का सारा डाटा चला जाता है. फिर पिन डालते समय विडियो कैमरे में आपका पिन रिकॉर्ड हो जाता है. अब जालसाज लैपटॉप में आपका डाटा ट्रान्सफर करके सस्ते कार्ड पर  डुप्लीकेट एटीएम  बना लेते हैं. विडियो कैमरे की मदद से आपका पिन लेकर आपका खाता खाली कर देते हैं.
आपके कार्ड का डाटा कई बड़े-बड़े मॉल और दुकानों में भी चुराया जाता है.  ऐसे मॉल या दुकान में जब आप खरीददारी करते हैं तो पॉश-मशीन में कार्ड स्वैप करने के पहले वे उसे डेस्कटॉप, प्रिंटर या किसी अन्य स्थान पर स्वैप करके आपके कार्ड का सारा डाटा चुरा लेते हैं. वे संभवतः मार्केटिंग उद्देश्य से आपके डाटा की चोरी करते हैं. लेकिन उनकी नियत बिगड़ जाये तो वे भी आपके कार्ड की क्लोनिंग कर ले सकते हैं और सामन्यतया हमलोग बिना हाथ से ढके पासवर्ड डालते हैं, जिसे विडियो कैमरे द्वारा आसानी से चुराकर आपका खाता खाली कर सकते हैं.
क्लोनिंग से बचने के लिए आप निम्नलिखित सुझावों का पालन करके लाभ उठा सकते हैं.
  1. यह सुनिश्चित कर लें कि एटीएम के कार्ड-रीडर से सटाकर तो कुछ नहीं रखा गया है.
  2. एटीएम में जब भी पिन डालें, दूसरे हाथ से ढककर डालें.
  3. फूटपाथ पर या घर-घर घुमने वालों के पॉश-मशीन पर अपना कार्ड स्वैप नहीं करें.
  4. प्रत्येक SMS को ध्यान से पढ़ें. यदि जलसाज आपके पैन कार्ड या सिम का डुप्लीकेट निकालने का प्रयास करेंगे तो आपको SMS अवश्य भेजा जाएगा।
  5. यदि आपका कार्ड पॉश मशीन के अलावा दुकानदार अन्य कहीं स्वैप करे तो उससे इसका कारण पूछकर उसे हतोत्साहित करें। 
     

Sunday, October 8, 2017

क्या निजीकरण है, सारी समस्याओं का समाधान ?

कुछ उत्साही लोग निजीकरण का जोर-शोर से समर्थन करते हैं।

लेकिन, रेल में निजीकरण का प्रयोग पूरी तरह असफल हो चुका है। निजीकरण के बाद रेलों में मनमानी वसूली के बावजूद घटिया भोजन की शिकायत तो आम बात है ही जब से बेड-रॉल निजी हाथों में गए हैं, उनकी गन्दगी की कहानियाँ भी कुख्यात होती रही हैं।

अनेक निजी व्यवस्था वाले शौचालयों में अनुचित वसूली के बावजूद दुर्गंध का राज होता है।

निजी विद्यालयों और अस्पतालों में किस तरह चार्ज वसूले जाते हैं। यह किसी से छुपा नहीं है।

निजीकरण अमरीका जैसे पूंजीवादी देशों में भी अपना भद्दा रूप दिखा चूका है। मंदी के दौरान लेमैन ब्रदर्स, ए  आई जी जैसी बड़ी कम्पनियाँ धड़ाम हो गईं। अमेरिकन फेडरल सरकार ने 180 बिलियन डॉलर की सहायता कर AIG को उबारा और उसका नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया। भारत में भी पूंजीपति अपने निजी कंपनियों के माध्यम से अरबों-खरबों के इंसेंटिव लेते रहे हैं, सरकारी बैंकों में पूंजी देते समय अनावश्यक शोर-शराबा होता है। पूंजीपतियों को इंसेंटिव मुफ्त में बांटे जाते हैं, जबकि सरकारी बैंक सामाजिक बैंकिंग सेवा भी देते हैं और  सरकार को  प्राप्त पूंजी पर डिविडेंड भी देते हैं।

निजी व्यवस्था ATM के केअर टेकरस का जम कर शोषण कर रही है। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार बैंकों से पूंजीपतियों को प्रति केअर टेकर जितनी राशि दी जाती है, केअर टेकर के जेब में उसकी आधी से भी कम राशि जाती है।

संविधान-निर्माताओं ने हमारे देश को कल्याणकारी राज्य का दर्जा दिया है। निजी कम्पनियों द्वारा किये जा रहे शोषण के कृत्य संविधान की भावनाओं के विपरीत हैं।

अनेक बार पूंजीपति लिमिटेड कम्पनियां बनाकर उनका दोहन करते हैं, फिर कम्पनियाँ दिवालिया घोषित कर दी जाती हैं, उसमें काम करने वाले सड़क पर आ जाते हैं और उनके बच्चे भूखे मरते हैं, जबकि पूंजीपतियों के ऐशो-आराम में कोई फर्क नहीं पड़ता है। हाल में दिवालिया हुई किंगफ़िशर एयरलाइन इसका उदाहरण है।

भारत में सैकड़ों निजी बैंक भी फेल हो चुके हैं। असफल होने वाले कुछ बैंकों के नाम हिंदुस्तान कमर्शियल बैंक लिमिटेड, नेदुंगड़ी बैंक लिमिटेड, बनारस बैंक लिमिटेड, ग्लोबल ट्रस्ट बैंक लिमिटेड आदि हैं। आम जनता की गाढ़ी कमाई को सुरक्षित करने के लिए सरकार ने इनका विलय सरकारी बैंकों में कर दिया। इस तरह पूंजीपतियों के कुव्यवस्था और मनमानी से डूबे निजी बैंकों का बोझ भी सरकारी बैंकों ने जनहित में ढोया।

 निजीकरण में स्वार्थी व्यक्ति येन-केन प्रकारेण ज्यादा से ज्यादा लाभ अर्जित करते हैं और यह निर्धनों के शोषण का जबरदस्त माध्यम है।

यदि कोई सरकारी कर्मचारी किसी से अनुचित राशि लेता है तो भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के सेक्शन 7  में
उस कर्मचारी को 3 से 7 वर्ष तक कारावास में रखने का प्रावधान है। लेकिन निजी व्यक्ति किसी से अनुचित वसूली करता है तो वह विजिलेंस या सी.बी.आई. के दायरे में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के अंतर्गत नहीं आता है और न ही उसके लिए इतने कड़े दंड का प्रावधान है। अतः निजीकरण उपरोक्त कारणों से लूट की खुली छूट देता है। 

Saturday, October 7, 2017

सुसंस्कारों का अभेद्य किला बनायें।




प्राचीन काल के सम्राट अपने राज्य के चारों ओर सुदृढ़ किले बनवाते थे। उनकी ऊँची और मजबूत दीवारों से टकराकर शत्रु के तीर निष्प्रभावी  हो जाते थे। प्रशिक्षित बहादुर लड़ाके हर पल किलों की सुरक्षा में तैनात रहते थे और शत्रु को देखते ही उसपर टूट पड़ते थे। 

इसी तरह नकारात्मक विचारों से बचने के लिए हमें भी अपने मस्तिष्क के चारों ओर सुसंस्कारों का अभेद्य किला बनाने की आवश्यकता है। हमें सकारात्मक विचारों वाले व्यक्तियों से मित्रता के साथ-साथ धार्मिक और प्रेरक साहित्य हमेशा पढ़ते रहना चाहिए ताकि शैतानी विचारों वाले विष बुझे तीर सुसंस्कारों से टकराकर निरर्थक हो जायें। 

सकारात्मक विचारों के लगातार प्रहार से भी नकारात्मक विचार निष्प्रभावी हो जाते हैं। अतः नकारात्मक विचार जब भी आक्रमण करें तो आप उन्हें निम्नलिखित शक्तिशाली  नारों से परास्त कर दें। 

1. वर्तमान साधेंगे, ब्रह्माण्ड सधेगा। 
2. मीरा ने पिया विष का प्याला, विष को अमृत कर डाला। 
3. अग्रसोची, सदा सुखी। 
4. जो हुआ अच्छा हुआ, जो होगा वह भी अच्छा ही होगा। 
5. जलता दीपक बनें और सभी सड़े विचार जला दें। 

मैं इन नारों को दुहराते हुए अपनी ऊँगली का एक पोर हल्के से दबाता रहता हूँ। यह एंकर जैसा कार्य करता है, अतः जब मैं नारे दुहराने की स्थिति में नहीं रहता हूँ तो सिर्फ ऊँगली का वह पोर हल्के से दबाता हूँ, अवचेतन मन संबंधित नारा स्वतः  दुहराने लगता है।
एंकरिंग के सिद्धांत का आप भी पूर्ण दोहन कर सकते हैं।