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Tuesday, March 28, 2023
FOCUS
Wednesday, September 1, 2021
मैं क्यों बीमार था?
बचपन से मैं तथाकथित रूप से बीमार रहता था।
मुझे प्रायः बुखार आ जाता था और पेट में दर्द होता था। मैं हमेशा पेट डबडबाकर देखता रहता था कि यह फूला हुआ तो नहीं है।
बीमारी मेरे लिए सम्पत्ति जैसी थी। यदि कोई काम नहीं करना होता था तो मैं बीमारी का बहाना बना देता था। लोगों के सामने हमेशा अपनी बीमारी के बारे में बात करके उनसे सहानुभूति पाता रहता था। पूरे क्षेत्र में पता था कि मैं बीमार रहता था। मुझसे मिलते ही लोग सबसे पहले मेरी तबियत के बारे में पूछते थे।
मुझे गला में भी दर्द हो जाता था। कभी-कभी तो जून की गर्मी में भी मेरे गला में इन्फेक्शन होकर 100 डिग्री सेंटीग्रेड से ज्यादा बुखार हो जाता था।
मेरे कुछ साथी खुलकर कहते थे कि मुझे शक की बीमारी है।
मैं उन्हें डॉक्टरों के पुर्जे दिखाकर तर्क करता था,"शक की बीमारी है तो गला में दर्द होकर बुखार कैसे हो जाता है?"
"मैं बीमार हूँ" का पोस्टर मैं अपने सीना और पीठ पर हमेशा लगाए रहता था।
एक बार मुझे बुखार हुआ, लेकिन छुट्टी की कमी थी, अतः बैंक गया। मैंने एक साथी को अपने हिस्से का काम करने के लिए अनुरोध किया क्योंकि मैंने सुना था कि बुखार में शरीर पर अधिक जोर देने से फेफड़ा में पानी आ जाता है।
मेरे साथी ने मेरा काम तो कर दिया, लेकिन उन्होंने मुझे काफी कुछ उपदेश सुना दिया।
बीमार रहने की बात मेरे अवचेतन में कैसे बैठी?
मैंने बचपन में सुना था कि बीमार लोग फल खाते हैं।
बीमार होने पर बचपन में मुझे अपना मनपसंद खाना "पावरोटी, दूध और चीनी" भी मिलता था।
बीमार होने पर मुझे स्कूल भी नहीं जाना पड़ता था और घर का कोई काम भी नहीं करना पड़ता था।
अतः बीमार होना मेरे अवचेतन मन को लाभ का सौदा लगता था। लेकिन, मेरी अंतरात्मा बहाने बनाने के लिए मुझे नहीं कचोटे और न ही लोग मुझे बहानेबाज कहें, इसलिए मेरे अवचेतन मन ने शायद बीमारी के लक्षण पैदा कर दिए थे।
यद्यपि ऐसा मैं अकेला नहीं हूँ, अनेक लोग हैं जिन्हें सचमुच कोई बीमारी नहीं होती है। लेकिन उनमें बीमारी जैसे लक्षण होते हैं। सुयोग्य चिकित्सक भी कहते हैं कि उनके यहाँ जितने रोगी आते हैं, उनमें आधे से ज्यादा मनोवैज्ञानिक रूप से बीमार होते हैं। उनसे अच्छी तरह बात करने से और विटामिन आदि लिख देने से वे ठीक हो जाते हैं। अंग्रेजी में Placebo नामक एक शब्द है, जिसका मतलब होता है-" नकली या मनोवैज्ञानिक दवा"।
एक दिन मैंने निर्णय लिया कि अब मैं स्वस्थ बनूँगा। इसके बाद सहानुभूति पाने के लिए लोगों के निकट अपनी बीमारी का वर्णन करना मैंने बन्द कर दिया। बीमारी के कारण किसी काम को टालना भी मैंने बंद कर दिया। मैंने स्वास्थ्यवर्द्धक आदतें भी अपना ली।
अब मैं स्वस्थ हो गया हूँ, लेकिन पुराने मित्र अभी भी मिलते ही चिंता के साथ मेरे स्वास्थ्य के बारे में पूछते हैं।
Monday, August 23, 2021
स्वाद:- आदत है या नशा?
किसी को मिठाई अच्छी लगती है; कोई मटन का चहेता होता है। राजस्थान में दाल-बाटी चूरमा बड़े ही चाव से खाई जाती है। पंजाब में मक्के दी रोटी और सरसों दा साग का बोल-बाला है। महाराष्ट्र में पाव लोकप्रिय है तो तमिलनाडु में डोसा और इडली की धूम होती है। गुजरात में मीठी दाल खाई जाती है। बिहार में लोगों को नमकीन दाल प्रिय है।
1986 में मैं कोटा के एक होटल में 12 सप्ताह के लिए ठहरा था। एक सुबह मैं अपने कमरे में दही-चूरा-चीनी और आम बड़े चाव से खा रहा था। मेरे एक पंजाबी मित्र उसी समय पहुँचे। मैंने उन्हें भी खाने का न्योता दिया। वे हाथ जोड़कर बोले कि दही-चूरा-चीनी और आम मुँह में रखकर वे कंठ के नीचे भी नहीं ले जा पायेंगे। मैंने उनके लिये उनके लिये टोस्ट-आमलेट मँगाया।
बचपन में हम जिस वातावरण में पले, वहाँ जो खाना खाया जाता था, हमें अच्छा लगने लगा।
बचपन में मैं अपने बुजुर्गों को चाय पीते देखता था। बड़ा होकर मैं भी मीठी चाय की चुस्की लेने लगा।
दुर्भाग्यवश जनवरी, 2014 में मुझे मधुमेह हो गया। चिकित्सक ने चीनी बंद कर दी। श्रीमती जी मुझे फीकी चाय परोसने लगीं। मन मसोसकर मैं फीकी चाय घोंटता था। प्रतीत होता था, "जीवन श्वेत-श्याम फ़िल्म हो गया है।" धीरे-धीरे मैं नये तौर-तरीकों में रम गया। अब मुझे मीठी चाय ही स्वादहीन लगती है।
अतः स्पष्ट है कि स्वाद एक आदत है और उसे बदला जा सकता है।
"सत्य के साथ मेरे प्रयोग" में महात्मा गांधी ने लिखा है कि उन्होंने मसालों को त्याग कर जब उबली हुई सब्जियां खाना प्रारंभ किया तो कुछ दिनों के बाद उन्हें उबली सब्जियां ही स्वादिष्ट लगने लगी।
अतः आप जब चाहें अपनी स्वास्थ्य की मांग के अनुसार स्वाद की नई आदतें बना सकते हैं।
प्रथम सप्ताह में आपको अधिक इच्छा-शक्ति पड़ेगी। जब अवांछित आदतों को करने की इच्छा आपको बेचैन करे तो रचनात्मक कार्यों में लग जाइये। रचनात्मक कार्यों के सफल निष्पादन से आपके शरीर में हैप्पी हार्मोन डोपामाइन मुक्त होगा, उपलब्धि प्राप्त करने की भावना आपके मन-मस्तिष्क को उत्साहपूर्ण कर देगी।
यदि कोई उचित कार्य न हो तो सीढ़ियाँ चढ़िये या किसी अन्य शारीरिक ऐक्टिविटी में लग जाईये। इससे आपके शरीर में हैप्पी होर्मोन एंडोर्फिन मुक्त होगा जो आपको बेचैनी से राहत देगा।
दूसरे सप्ताह में आप का शरीर और मन नई आदतों के साथ तालमेल बैठाने लगेगा।
तीसरा सप्ताह बीतने के बाद नई आदतें आपको अच्छी लगने लगेंगी।
छियासठ दिन से तीन महीने के बीच में सामान्यतया नई आदतें आपके स्वभाव का अभिन्न अंग बन जायेंगी।
Sunday, May 10, 2020
उत्पादक आदतें कमायें; धमाकेदार सफलतायें चहुँओर पायें
प्रथम खंड
भाग्य-विधाता
हर्ष की बात
व्यवहारिक उदाहरण
आदत-उपस्थिति-पुस्तिका
मैं भी अगले महीने के द्वितीय सोमवार को सबेरे-सबेरे इस विषय पर दूसरी रचना प्रस्तुत करूँगा।
आप मेरे वॉट्सएप्प नंबर 9431013500 पर मुफ्त विचार-विमर्श भी कर सकते हैं।
यदि आप अपने जीवन में प्रत्येक मनचाही वस्तु प्राप्त कर रहे हैं तो आपको उपरोक्त लेख पढ़ने की कत्तई आवश्यकता नहीं है।
लेकिन, अगर आपने जो लक्ष्य बनाये हैं, वहाँ पहुँचने के लिए आप संघर्षरत हैं तो अपने अस्त्रों को अच्छी आदतों से अवश्य ही ज्यादा प्रभावी और कारगर बना लें क्योंकि
कुछ कुछ लगातार करते हैं,
उनके जीवन में चमत्कार होता है।
निरंतर प्रयास करते हैं,
उनका जय-जयकार होता है।
लेखक
उत्तम कुमारसहयोगीगण
अद्वितीय सुशांतशिखा श्रीवास्तव
गौरव सुशांत
Sunday, November 3, 2019
क्या मधुमेह ठीक हो सकता है?
13 जून 2019 को चिकित्सा हेतु मैं मोहन डायबिटीज स्पेशलिटी सेन्टर, मल्लेश्वरम, बंगलुरू गया था। वहाँ डॉ प्रवीण जी. ने मुझे अपने पेट का घेरा कम करने के लिए कहा। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जैसे-जैसे घेरा कम करते जाएंगे, मधुमेह, यूरिक एसिड आदि की गोलियां भी घटती जाएंगी। 13 जून 2019 में मेरा पेट का घेरा 110 सेंटीमीटर था, यह अब 98 सेंटीमीटर है। इस बीच स्थानीय चिकित्सक ने मधुमेह की गोलियां भी घटा दी हैं।
अनेक चिकित्सक मानते हैं कि टाइप 2 मधुमेह का प्रमुख कारण शरीर में वसा की अधिकता होती है। अधिक वसा मसल्स के ऊपर भी बैठी रहती है। यह पैंक्रियास से उत्पन्न इन्सुलिन को ठीक से काम नहीं करने देती है। फलस्वरूप पैंक्रियास और ज्यादा इन्सुलिन उतपन्न करता है, लेकिन शरीर में वसा की मात्रा क्रमशः बढ़ती जाती है और पैंक्रियास जितना भी इन्सुलिन निकालता है, वह कम पड़ जाता है तो मधुमेह के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। फिर पीड़ित चिकित्सक के पास जाते हैं। चिकित्सक दवाई देकर पैंक्रियास को और ज्यादा इंसुलिन निकालने के लिए बाध्य करते हैं। रोगी को चीनी और तेल आदि नहीं खाने के लिए भी सलाह दिया जाता है, लेकिन ज्यादा जोर मीठी वस्तुएं नहीं खाने पर रहता है। फलस्वरूप मसल्स पर वसा की परत बढ़ती जाती है। पैंक्रियास द्वारा अब भी निकाली गई इन्सुलिन कम पड़ जाती है। पैंक्रियास को दवा की मात्रा बढ़ाकर और ज्यादा इन्सुलिन निकालने के लिए बाध्य किया जाता है और अंत में यह थककर जवाब दे देता है।
अतः शरीर में वसा की मात्रा कम होने से शरीर में उत्पन्न इन्सुलिन पर्याप्त कार्य करने लग सकता है।
डॉ प्रमोद पाठक, डॉ नन्दिता साह (नारी शक्ति पुरस्कार प्राप्त) आदि अनेक चिकित्सकों का विश्वास है कि मधुमेह को समुचित खान-पान और व्यायाम द्वारा ठीक किया जा सकता है। ये मुख्यतः रिफाइंड चीजों तथा दूध आदि का सेवन बंद करने और पर्याप्त व्यायाम तथा ध्यान आदि की सलाह देते हैं।
मैं दावत बासमती ब्राउन चावल प्रति दिन खाता हूँ। किशमिश, खजूर आदि का भी उचित मात्रा में सेवन करता हूँ। मेरा प्रयास रहता है कि भोजन में कार्बोहाइड्रेट 25 प्रतिशत, प्रोटीन 25 प्रतिशत तथा हरी सब्जियां सलाद आदि 50 प्रतिशत रखूँ। Freedom from Diabetes app पर तथा पुस्तक में दिए गए तेल/चीनी रहित अनेक स्वादिष्ट व्यंजनों का सेवन करता हूँ। कुछ दिनों पहले चीनीरहित चॉक्लेट आइसक्रीम का भी मैंने मजा लिया।
मैं प्रतिदिन प्राणायाम और कसरत करता हूँ। प्रति सुबह हरी पत्तियों, फल और गर्म मसालों (दाल चीनी आदि) से युक्त स्मूथी मैं पीता हूँ। ग्लूकोमीटर से चीनी हमेशा जांचता रहता हूँ ताकि यह बहुत कम न हो जाये। इन उपायों से मेरे एसिडिटी में भी काफी लाभ हुआ है।
पिछले वर्ष अनेक अंग्रेजी चिकित्सकों से सलाह लेकर मैंने उच्च रक्तचाप की गोली छोड़ी थी। ईश्वर की कृपा से प्रति सप्ताह जांच में यह कभी बढ़ी नहीं मिली। अब प्रतीत होता है कि मधुमेह और एसिडिटी की गोलियों से मुक्त होने का समय शीघ्र आने वाला है।
नोट: 1. अधिक जानकारी के लिए डॉ प्रमोद पाठक द्वारा लिखित 'Freedom From Diabetes' पुस्तक पढ़ें। यह अमेज़न पर हिंदी में भी उपलब्ध है।
ये मेरे अनुभव हैं। कोई भी प्रयोग योग्य चिकित्सक की देख-रेख में ही करें क्योंकि उपरोक्त विधियों से मधुमेह बहुत तेजी से घट सकता है।
2. उपयोगी वेबसाइटें: i) sharan-india.org
ii) freedomfromdiabetes.org
Tuesday, January 29, 2019
कैसे टूटी मेरे मित्र के कूल्हे की हड्डी .
Sunday, December 3, 2017
क्या बैंक-खातों का नोमिनी सम्पूर्ण राशि रख सकता है?
क्लोनिंग से बचायें अपने डेबिट/क्रेडिट कार्ड
- यह सुनिश्चित कर लें कि एटीएम के कार्ड-रीडर से सटाकर तो कुछ नहीं रखा गया है.
- एटीएम में जब भी पिन डालें, दूसरे हाथ से ढककर डालें.
- फूटपाथ पर या घर-घर घुमने वालों के पॉश-मशीन पर अपना कार्ड स्वैप नहीं करें.
- प्रत्येक SMS को ध्यान से पढ़ें. यदि जलसाज आपके पैन कार्ड या सिम का डुप्लीकेट निकालने का प्रयास करेंगे तो आपको SMS अवश्य भेजा जाएगा।
- यदि आपका कार्ड पॉश मशीन के अलावा दुकानदार अन्य कहीं स्वैप करे तो उससे इसका कारण पूछकर उसे हतोत्साहित करें।
Sunday, October 8, 2017
क्या निजीकरण है, सारी समस्याओं का समाधान ?
निजीकरण में स्वार्थी व्यक्ति येन-केन प्रकारेण ज्यादा से ज्यादा लाभ अर्जित करते हैं और यह निर्धनों के शोषण का जबरदस्त माध्यम है।
यदि कोई सरकारी कर्मचारी किसी से अनुचित राशि लेता है तो भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के सेक्शन 7 में
उस कर्मचारी को 3 से 7 वर्ष तक कारावास में रखने का प्रावधान है। लेकिन निजी व्यक्ति किसी से अनुचित वसूली करता है तो वह विजिलेंस या सी.बी.आई. के दायरे में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के अंतर्गत नहीं आता है और न ही उसके लिए इतने कड़े दंड का प्रावधान है। अतः निजीकरण उपरोक्त कारणों से लूट की खुली छूट देता है।
Saturday, October 7, 2017
सुसंस्कारों का अभेद्य किला बनायें।
एंकरिंग के सिद्धांत का आप भी पूर्ण दोहन कर सकते हैं।