Wednesday, October 8, 2014

TELL BLACK MAILERS," AN UNEQUIVOCAL NO."

There is a short, interesting story about blackmail in Jeffrey Archer's novel," FIRST AMONG EQUALS."
A stunningly beautiful call girl Mandy sent a blackmailing note to Mr. Raymond Gould, the MP & undersecretary, asking 500 pounds. Mr. Gould hired solicitor Sir Roger Pelham and paid him 500 pounds to get rid of the blackmailer.
The attorney's logic was simple. If you pay the blackmailer beast, more ransom may be demanded sooner or later. Hence it is better to face the facts boldly and tell the blackmailer," A firm and unequivocal No."
Many times my friends approach me when they are fearful of certain impending blackmail. I calmly ask," What is the worst thing that can happen to us?"  I allow the question to be absorbed for some time. If no reply comes, I repeat the question again and then explain," The worst thing that can happen is that the cruel death will hit us and that is certain anyway then why are we so fearful? They get great relief often.
Blackmailers are nasty human beings. You can trust the deadly cobra but not the blackmailers.  I hear stories how did the king cobra spare a small child. During British rule, Shri Nehru lived in a jail which had many snakes but they never harmed him.
 One thing is certain about the deadly cobra that it will not harm you unless and until you put your foot absentmindedly on its body. But the devil's offspring,  the blackmailer will not allow you to heave a sigh of relief until you can fulfill his lust. Therefore, face the facts boldly, report police, take legal help or do any legal thing to get rid of him.

Friday, October 3, 2014

सस्ते में ईलाज कैसे करायें ?

दुर्भाग्यवश अनेक चिकित्सकों ने चिकित्सा को ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाने का  साधन बना लिया है। वे अपना दवाखाना रखते हैं और ऐसी दवाइयाँ लिखते हैं जो सिर्फ उनके दवाखाने  में ही 
उपलब्ध होती  है। मैंने इन दवाइयों में मौजूद केमिकल वाले अन्य दवाइयों से  इनकी तुलना की  तो पाया कि लगभग/  हूबहू कॉम्बिनेशन वाली दवाइयाँ बाजार में काफी सस्ती मिलती हैं। अतः आप यदि बिना दवाखाना रखने वाले चिकित्सक से दिखाएंगे तो दवाइयों के मूल्य में आपको भारी बचत हो सकती है।
अनेक चिकित्सक बहुत ज्यादा जाँच लिखते हैं। उनके सहायक आपको किसी खास जाँच-घर में ही जाँच कराने की सलाह देते हैं।  ऐसे चिकित्सकों से भी यथा-संभव दूर रहें।
चिकित्सा-जगत में स्वर्गीय डॉक्टर शिवनारायण सिंह और डॉक्टर एस.एन जायसवाल  जैसे आदर्शवादी और योग्य चिकित्सक बहुत हैं। आप  ऐसे चिकित्सकों से इलाज कराकर खर्च  में भारी बचत कर सकते हैं। मेरे दोस्त-समबन्धी जब बीमार पडते हैं तो मैं उनका समाचार पूछने जाता हूँ। बातों ही बातों में उनसे इलाज करने वाले चिकित्सक का नाम और इलाज के दौरान उनके अनुभव के बारे में पूछता हूँ। इस तरह मेरे पास अपने शहर के सुयोग्य और कम जांंच एवं दवा लिखने वाले चिकित्सकों की सूची बन गयी है।
कुछ बीमारियों का इलाज सचमुच काफी खर्चीला होता है। ऐसी बिमारियों के चपेट में आने पर आपकी आर्थिक स्थिति चरमरा सकती है। अतः आप एक फ्लोटिंग मेडिक्लेम पालिसी ले सकते हैं जो एक विशेष राशि तक आपके परिवार के किसी भी सदस्य का चिकित्सा खर्च वहन कर सकता है। विस्तृत जानकारी आपको सम्बंधित इन्सुरेंस कंपनी के कागजात से  मिल सकती है। पंजाब नेशनल बैंक भी ओरिएण्टल इन्सुरेंस कंपनी के साथ टाई-अप करके  बहुत आकर्षक मेडिकलेम पालिसी बेचता है जिसमें आपके परिवार के चार सदस्यों को फ्लोटिंग मेडिक्लेम इन्सुरेंस दिया जाता है।
मैनें गूगल सर्च करने पर पाया कि मैनकाइंड फार्मा लिपिड प्रोफाइल कम करने की दवा LIPIKIND-F  4 रूपये 20 पैसे टेबलेट बेचती है, यही दवा कुछ कंपनी 15 रूपये टेबलेट बेचती है। इसी तरह इप्का की  LOSANORM २५, 2 रूपये प्रति टेबलेट से भी कम पर मिलती है जबकि इसी कैमिकल से बनी दवा के लिए कई कंपनियां 5 रूपये टेबलेट से भी ज्यादा एमआरपी रखी हैं।
अतः आप जागरूक रहकर अपने बटुए पर कम दबाब  देकर भी अपना इलाज करा सकते हैं। 

Sunday, September 28, 2014

THE MORE SPECIFIC, THE MORE EXCELLENT

The more specific and measurable your goal, the more quickly you will be able to identify, locate, create, and implement the use of the necessary resources for its achievement.

Charles J. Givens


One fine day, I received a phone call from a courier boy. The poor chap asked furiously," Sir, where is your house in banker's colony." I boasted calmly," I have been living there for 15 years. Ask my name from anybody." He became much flustered, "None is outside. To whom shall I ask? Please tell me your house number." I realized my mistake and said meekly, L-4.

Recently I called on my friend Manish Jee in Kolkata. He told me," He lives in Shipping Corporation housing society." I presumed this society must be big and famous. So I didn't bother to ask Plot number etc. and boarded one taxi, assuming that the cab driver must be knowing it.
 We were searching Shipping Corporation housing society, near Park Circus, from the windows of the cab. The cab driver, too, was not able to locate it. Finally, I telephoned Manish Jee who came on the road to receive us; we discovered to our dismay that the cab was just 50 feet away from the Shipping Corporation housing society.
 Once I was reading a book on creative writing, the accomplished author exhorted to write explicitly e.g.Write," Uttam was eating bread and butter."  instead of writing " He was eating."  Being specific is an art. The more one practices, the more proficient he becomes. Be as much specific as possible. The more specific, the more excellent e.g. one may write," Uttam was eating brown bread with Amul butter at 8 A.M. in my house" and so on.



Sunday, September 21, 2014

बीमारियों में जड़ी-बूटियों का उपयोग, कितना उचित ?


मुझे मधुमेह हुआ तो मेरे अनेक शुभचिंतकों ने अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियों के बारे अवांछित सलाह दी। मेरे एक मित्र ने पूरे विश्वास के साथ भरोसा दिलाया कि बेल-पत्र की कोंपल मधुमेह पर जादू जैसा असर डालती है। चूँकि मूझे पता था कि बेल-पत्र की कोंपल का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है, अतः मैंने इसे आजमाया, मुझे तो मधुमेह में इससे कोई लाभ नहीं हुआ।

उपरोक्त विषय पर मेरे एक सम्बन्धी जो एम.बी.बी.एस., एम.डी. चिकित्सक हैं. उनका कहना है कि मधुमेह जैसी गंभीर बीमारियों में जड़ी-बूटियों के उपयोग से बचना चाहिए क्योंकि उनके गुण-दोषों को परखने के लिए कोई रिसर्च नहीं किया गया है . कुछ जड़ी-बूटियों के दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं, जैसे कुछ लोग मानते हैं कि करैले का रस ज्यादा पीने से किडनियां फेल हो सकती हैं. यद्यपि इस पर शायद कोई रिसर्च नहीं हुआ होगा।

 एक बार मेरे एक मित्र ने मुझे बताया कि एक जड़ी-बूटी बेचने वाला घुटने के दर्द की राम-बाण दवा बेच रहा है। उस दुकान पर जाकर मैंने भी दवा खरीद ली।  दुकानदार दवा की तारीफ में एक से बढ़कर एक कशीदे काढ़ रहा था, लेकिन उसने दवा में प्रयुक्त जड़ी-बूटियों का नाम नहीं बताया और कहा कि यह ट्रेड-सेक्रेट है।  कुछ दिन दवा  खाने के बाद मेरा दर्द तो ठीक गया, लेकिन मैं अजीब नशे जैसी हालत में रहने लगा।  मेरे एक मित्र को जब यह पता चला तो उसने बताया कि वही दवा खाने के बाद उसके पिताजी के दोनों पैर चेहरा सहित सूज गए थे। चिकित्सक के सलाह पर दवा बन्द करते ही उनकी सूजन ठीक हो गयी।
मेरे अनुजतुल्य चन्द्रशेखर ने इस विषय पर अपना निम्नलिखित अनुभव बताया।
मै पत्नी के पैर दर्द की दवा मोतिहारी के एक नामी आयुर्वेदिक चिकित्सक से लेता था और दर्द शीघ्र  ठीक हो जाता था। अतः पत्नी भी खुश हो जाती थी और मै भी निश्चिन्त हो जाता था। एक दिन पत्नी ने बताया कि दवा लेने के बाद पैर दर्द तो चला जाता है पर पेट में दर्द होने लगता है। यह सुनकर मेरा माथा ठनका। मै इसके पीछे पड़ा तो पता चला कि इसमें पेन किलर के टेबलेट को पीसकर मिलाया जाता था। मै ढगा महसूश करने लगा। 
कभी भी आयुर्वेदिक दवा लोकल बनाया हुआ नहीं लेनी चाहिए। हमेशा ब्रांडेड कम्पनियों जैसे डाबर ,झंडू या पतंजलि का ही लेना चाहिए।
अतः फुटपाथ आदि पर जड़ी-बूटियां बेच रहे नीम-हकीमों के सब्ज-बाग मेँ आकर अपने स्वास्थ्य से खिलवाड़ न करें। यदि आयुर्वदिक दवा खाना चाहें तो मशहूर कंपनियों की दवायें शिक्षित आयुर्वेदिक चिकित्सक की देख-रेख में खाएं। मैनें दादी-नानी  के नुस्खों को भी एक सीमा तक लाभप्रद पाया है, इन्हें लेते समय कम से कम आपको इतना पता तो रहता ही है कि आप क्या ले रहे हैं ?


Monday, September 8, 2014

दूसरा विध्वंशकारी वाक्यांश " मैंने सोचा। "

 "मैंने सोचा" भी समय बर्बाद करने वाला, उपयोगहीन और विध्वंशकारी वाक्यांश है। हममें से अनेक न तो  कोई जांच करते हैं ना ही  अपनी नजरें चारों ओर दौड़ाते  हैं और बिना किसी ठोस आधार के कुछ भी सोचकर आगे बढ़ जाते हैं, और जब ठोकर लगती है तो अफ़सोस के साथ कहते हैं, "ओह ! मैंने क्या सोचा था, और क्या हो गया ? "
मैंने अपनी बाइक की चोरी के बारे में एक लेख," OVERCONFIDENCE KILLS " लिखा है।
  मैं अपनी बाइक हर जगह अच्छे तरीके से लॉक करके साईरन प्रणाली को ऑन कर देता था, लेकिन मैं अपने बैंक परिसर में साईरन प्रणाली ऑन नहीं करता था क्योंकि मैं सोचता था कि मैं शाखा प्रबंधक हूँ, मुझे और मेरे बाइक को इलाके के सारे लोग पहचानते हैं। अतः कोई भी चोर मेरे शाखा परिसर से मेरा बाइक चुराने का साहस नहीं करेगा, लेकिन अफ़सोस एक काले शनिवार क़ो जब मैं शाखा कार्यालय से बाहर निकला तो मेरे बाइक का कहीं अता-पता नहीं था। कोई शातिर  चोर उसे लेकर रफूचक्कर हो गया था। मुझे जोरदार सदमा लगा, जब एटीएम गार्ड मेरे बाइक का रंग भी ठीक से नहीं बता पाया। मेरी यह सोच कि पूरे इलाके के लोग मेरी बाइक को पहचानते हैं, पूरी तरह आधारहीन और काल्पनिक निकली। लेकिन शायद साईरन प्रणाली ऑन करने की परेशानी से बचने के लिए मैंने यह सोच लिया था की इलाके के सारे लोग मेरी बाइक पहचानते हैं।
एक शुभ मंगलवार को मेरी मेम साहब ने ऑफिस जाते समय मुझे टिफिन बॉक्स नहीं दिया बताया," आज आपके ऑफिस में पार्टी है, अतः टिफिन नहीं बनाया है। मैंने मुस्कराकर  कहा," मैंने पार्टी के बारे में बताया नहीं, आपने पूछा नहीं तो फिर आपने पार्टी की बात कैसे सोच ली ? मेम साहब रक्षात्मक अंदाज में बोलीं ,"आज आपके बैंक में विशेष दिन है न, इसलिये मैंने सोच लिया।" उस दिन सचमुच विशेष दिन था, लेकिन सामिष स्टाफ सदस्यों ने पार्टी अगले दिन शिफ्ट कर दी थी।  अतः मैंने मेम साहब को टिफिन बनाने से मना नहीं किया था, मेरी धर्मपत्नी ने भी इस बारे में कुछ नहीं पूछा और पार्टी की बात सोचकर लंच नहीं बनाया। शायद वो किसी और काम में व्यस्त होंगी और उस दिन लंच बनाना नहीं चाहती होंगी। अतः उनके अवचेतन मन ने  "मैंने सोचा " वाक्यांश का सहारा लिया होगा।  खैर मैंने भी मौके का फायदा उठाया और वंशी स्वीट्स में गरमा-गरम और लजीज पाव-भाजी का मजा लिया। यद्यपि मनोवैज्ञानिक मुझ पर भी आरोप लगा सकते हैं कि मेरा अवचेतन मन पाव-भाजी का मजा लेना चाहता था, इसलिए पार्टी के अगले दिन होने की बात मैंने अपनी मैडम को नहीं बताई। 
एक बार हमलोगों ने ऋण नहीं चुकाने वाले ऋणियों को नोटिस भेजा। एक सीधे-सादे ऋणी ने आकर कहा,"साहब, मैंने सोचा कि मेरा ऋण माफ़ हो गया है, इसलिए मैंने ऋण नहीं चुकाया। मैंने पूछा," आपको जब बैंक ने ऋण चुकता प्रमाण-पत्र नहीं दिया तो आपने ऐसा कैसे सोच लिया? " शायद वह ऋणी अपने सीमित आय से ऋण का मासिक किश्त चुकाना नहीं चाहता था, अतः उसने भी 'मैंने सोचा' वाक्यांश का सहारा लिया। परिणामस्वरूप ऋण की राशि बहुत ज्यादा हो गयी थी और वह मुकदमे  के डर से नींदविहीन रातें और चैनविहीन दिन बिता रहा था। 
अतः "मैंने सोचा" भी "बस एक बार" की तरह समय बर्बाद करने वाला, आधारहीन और बकवास भरा वाक्यांश है। अपना भविष्य उज्जवल बनाने के लिए सपने में भी इससे दूर भागें।

  

Sunday, September 7, 2014

तिसरा विध्वंशकरी वाक्यांश "चलता है"

 पहले हम दो  विध्वंशकारी  वाक्यांशों "बस एक बार" और "मैंने सोचा" के बारे में बता चुके हैं। आज हम तीसरे  विध्वंशकारी  वाक्यांश "चलता है" के बारे में विमर्श करेंगे। यह वाक्यांश पहले दोनों वाक्यांशों से भी ज्यादा हानिकारक है।
उपहार सिनेमा हादसा भारत की भीषणतम अग्नि दुर्घटनाओं में से एक था। चेतावनी दिए जाने के बावजूद भी सिनेमा हॉल के मालिकों ने सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं किये । शायद उन्होंने सोचा होगा,"जैसा भी इंतजाम है, चलता है ". 
इस "चलता है" सोच के भयानक परिणाम हुए, भारत के अब तक के सबसे भयावह अग्नि-दुर्घटना में दम घुटने से  59 लोग असमय काल के गाल में समा गए और 103 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए।   बाद में न्यायलय ने अंसल-बंधुओं समेत 12 लोगों को लापरवाही आदि  के अपराध का दोषी पाया और उन्हें कारावास तथा आर्थिक दंड की सजा सुनाई।  
एक बैंक में विश्वास (बदला हुआ  नाम)  नामक एक युवक काम करता था। वह बड़े ही मृदुल स्वभाव का आग्यांकारी स्टाफ था। बैंक अधिकारीयों का उस पर अटूट विश्वास था। 
बैंक में वह काफी दुर्भाग्यपूर्ण दिन था , जब बैंक के निरीक्षक ने लाखों रुपयों का घोटाला पकड़ा। यह घोटाला विश्वास ने कर दिया था।  सुंननेवालों को अपने कानों पर  विश्वास नहीं हुआ। विश्वास ने रोते -रोते बताया कि एक बार उसे कुछ सौ रुपयों की जरुरत थी। उसने खाते में गरबर करके रूपये निकाल लिए और बाद में जमा कर दिया। इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया। अतः उसने सोचा कि उसका तरीका चल गया। अतः जब उसे दुबारा कुछ ज्यादा रुपयों की जरुरत हुई तो उसने यही तरीका अपनाया और सोचा,"चलता है। " धीरे-धीरे उसकी जरूरतें बढ़ती गयीं और उसने काफी बड़े रकम का घोटाला कर दिया। अब उसके पास उतनी रकम नहीं थी कि वह खातों में डालकर गरबरी ठीक कर पाता। शाखा में निरीक्षण के दौरान गरबरी रह गयी और विश्वास पकड़ा गया। कल तक  जो चल रहा था, वह नहीं चल पाया और बेचारे की नौकरी चली गयी।
 2 G घोटाला करने वाले सोच रहे होंगे कि सब चलता है, अंततः वह घोटाला पकड़ा गया, अनेक लोग जांच के घेरे में है। अनेक लोगों को ज़मानत नहीं मिलने के कारण महीनों जेल में बितानी पड़ी।  यद्यपि कौन दोषी है और कौन निर्दोष ? इसका फैसला होना बाकी है। 
अतः आज जो चलता है, कल बड़े मुसीबत की जड़ बन सकता है। समय रहते इस वाक्यांश से तोबा कर लें। भले ही प्रारम्भ में आपको थोड़ा कष्ट होगा, लेकिन अंततः  आपका जीवन ज्यादा  सुखद और शांतिपूर्ण होगा।


  

Monday, September 1, 2014

WHAT ARE YOUR SIGNBOARDS?

Do you know," Every person carries many visible sign boards with him." That is why we call someone intelligent; we call someone trustworthy; we call someone cunning; and so on.
 I too carried a big signboard which said," I forget no favour and forgive no disfavour." This sign was inspired by a character in Sidney Sheldon's famous novel,"The Other Side of Midnight ." I had made it intentionally after giving due thought. However, later on, I felt that forgiving no disfavour is behaving just like a snake.
 It is said that the snake bites even that person who feeds milk to it when it gets a little displeasure. So there is one popular idiom in our area, “You may feed tonnes of milk to a snake, but even then it will never be trustworthy."
Therefore, I decided to change my signboard. Now it reads," I forget no favour; I condone some disfavour, but don't take me for granted." The signboard is again well thought. When I reciprocate the favours given, I assure my friends and public a positive reciprocal gesture for every favour they bestow upon me. Thus I encourage others to give me favours. I condone unintentional disfavours and counsel such persons. But after all, being Senior Manager, I have certain administrative functions to discharge, so I need to instil some sense of fear also. So sometimes I warn and sometimes I retaliate selectively if it becomes necessary. However, I try to be as discreet as a surgeon who operates and takes out only bad parts of the body.
Have you ever analysed what signboards you carry with you? Have you made your signboards after giving a proper thought? Do you change or modify your signboards when it is need of the hour?
Please take a pen and a piece of paper and start writing your answer to the above questions. Investing a little time, in this exercise, may reap tremendous benefits.

Friday, August 15, 2014

'बस एक बार' एक विध्वंशकरी वाक्यांश

 'बस एक  बार', संभवतः इस संसार का सबसे ज्यादा नकारात्मक और विनाशकारी वाक्यांश  है।
कोई कहता है कि  'बस एक  बार', मैं पांच मिनट और सो लेता हूँ, उसके बाद पांच किलोमीटर तेजी से टहलूंगा। कोई कहता है कि  'बस एक  बार', मैं जी भर के शराब पी लेता हूँ, उसके बाद अगले सात जन्म तक सपने में भी इसे  नहीं  छुऊँगा। कोई कहता है कि  'बस एक  बार', पान या गुटखे का मजा ले लेता हूँ, फिर कभी इनके आस -पास भी नहीं फटकूंगा। 
लेकिन , अफ़सोस , बाद  में  उन्हें  महसूस  होता  है  कि  'बस एक  बार', वाक्यांश  ने  न  केवल  उनके  स्वास्थ्य  पर , बल्कि उनकी  महत्वकांछाओं  पर  भी  पानी  फेर  दिया  है , क्योंकि  'बस एक  बार' का सिलसिला  अनवरत  चलता  चला  जाता  है। 

 कैसे  हम  इस  नकारात्मक और विनाशकारी वाक्यांश  से  छुटकारा  पा  सकते  हैं ?
यदि  कोई  बुरी  आदत  त्यागने  लायक  है  तो  इसे  झट-पट  त्याग  दें।  यदि  गुटखा  खाना  खतरनाक  है  तो  फिर क्यों  'बस एक  बार' एक  गुटखा  खाने  के  बारे  में  सोचें, क्यों  न  इसे  अविलम्ब अलविदा  कह  दें ?
यदि  कोई  काम  करने  लायक  है  तो  उसे  १० सेकंड  के  लिए  भी  क्यों  टाले , क्यों  न  उसे  अभी  तुरत  करना  प्रारम्भ  कर  दें ?
अतः आज  ही  टाल -मटोल  के  शहंशाह  'बस एक  बार', को  हमेशा  के  लिए  अलविदा  कह दें  और  गतिशीलता  के  सम्राट  'अविलम्ब ' को  सदा  के  लिए  गले  लगा  लें।  अपने सपने सच करना और जीवन  के  उद्देश्यों को पाना  आपके  लिए आसान हो जायेगा। 

Tuesday, August 5, 2014

RAISE YOUR VOICE FOR GOOD CAUSES.

“Never be afraid to raise your voice for honesty and truth and compassion against injustice and lying and greed. If people all over the world...would do this, it would change the earth.”- William Faulkner.
"The person who bears oppressions silently more guilty than oppressors."- Bal Gangadhar Tilak.
Raise your voices for good causes. Ignore neither excesses nor filth. Take the broom to clean as per your might. Let's work together to make this world a better place to live.
जिन खोजा तिन पाइंया गहरे पानी पैठ,
मैं बौरी डूबन डरी, रही किनारे बैठ,(Those who dared, got by exploring deep waters. I, the coward, feared to drown and kept sitting on the shore) 

सपने में भी अपना पासवर्ड नहीं बताएं।

ठगों से सतर्क रहें। 


एक छरहरी स्मार्ट युवती मेरी  शाखा में एक  दिन  आयी। उसने बताया ," एक  व्यक्ति  ने  रोबदार  आवाज  में  उसे फ़ोन पर धमकी दी कि उसका डेबिट कार्ड फ्रीज किया जा रहा है। "महिला ने कारण पूछा तो उसने बताया कि महिला के पति के खाते का वेरिफिकेशन पेंडिंग है, अतः खाता फ्रीज किया जा रहा है। फ़ोन करने वाले उचक्के ने अपने आप को  बैंक -अधिकारी  बताया  और  महिला को सुझाव दिया कि वह अपने डेबिट कार्ड (एटीएम) का नंबर और पासवर्ड नोट कराकर सत्यापन करा ले। महिला को दाल में कुछ काला लगा इसलिए उसने ठग को अपने पति का मोबाइल नंबर दे दिया। 
महिला का फ़ौजी पति रेलगाड़ी में यात्रा कर रहा था, उसी समय उचक्के ने उसे फ़ोन करके एटीएम का नंबर और पासवर्ड माँगा। पहले तो महिला का पति झिझका, लेकिन जब धोखेबाज ने खाता फ्रीज करने की धमकी दी तो उसने एटीएम नंबर और पासवर्ड बता दिया। ठग ने मिनटों के अंदर ऑनलाइन खरीददारी करके सीधे-साधे फ़ौजी के खाते से लगभग सारा रुपया निकाल लिया।
मोबाइल पर सन्देश आने के बाद उनलोगों ने अपना एटीएम ब्लॉक करा लिया। अब महिला की परेशानी यह थी कि वह अपने पति के खाता से वेतन की राशि कैसे निकाले क्योंकि खाता पति के नाम से था और पति जम्मू-कश्मीर में पोस्टेड थे। इस तरह ठग ने पैसे भी निकाल लिए और दम्पति के परिवार को घोर परेशानी में भी डाल दिया।

कृपया यह  ध्यान रखें, "आपका  बैंक आपका पासवर्ड या आपके एटीएम/

डेबिट कार्ड/क्रेडिट कार्ड से सम्बंधित कोई भी जानकारी नहीं मांगता है." अतः

 सपने में भी ऐसी कोई जानकारी किसी जालसाज को नहीं दें। 














Saturday, August 2, 2014

BE FLEXIBLE


 BE FLEXIBLE LIKE YOUR TONGUE, HARD TEETH ARE EXTRACTED ONE BY ONE; THE FLEXIBLE TONGUE LASTS WHOLE LIFE.

 BE FLEXIBLE LIKE AIR FILLED TYRES; THEY ABSORB SHOCKS QUICKLY AND GO FAR AWAY.
 BE FLEXIBLE LIKE AKBAR THE GREAT, WHOSE POLICY OF TOLERANCE MADE HIS NAME IMMORTAL.
 BE FLEXIBLE LIKE LORD SHRI KRISHNA AND HELP TRUTH PREVAIL.
 BE FLEXIBLE LIKE AN ALIVE BODY, DEAD TISSUES BECOME BRITTLE.