एक बार एक व्यक्ति दायें हाथ में रोटी लेकर बायीं हथेली में सटाकर खा रहा था। उसके साथी को यह देखकर घोर आश्चर्य हुआ। साथी ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा," भाई, तेरी बाँयी हथेली खाली है, फिर तू बार-बार रोटी बायीं हथेली में सटाकर क्यों खा रहे हो ? उस व्यक्ति ने बड़ा दुःखद उत्तर दिया," मैं कल्पना कर रहा हूँ कि मेरी बायीं हथेली में नमक है और मैं नमक के साथ रोटी खा रहा हूँ। " उसके साथी को बड़ा सदमा लगा, साथी ने माथा ठोकते हुए कहा," मुर्ख! अगर तुझे कल्पना ही करनी है तो कल्पना कर कि तेरी बायीं हथेली पर मलाई है और तू मलाई-रोटी खा रहा है।
अगर परिवार का कोई भी व्यक्ति घर आने में देर करता था तो माँ घबराने लगती थी और उनके मन में बुरे ख्याल आने लगते थे। एक बार पिताजी देरी से आये , माँ घबराई हुई थी ; उनके मन में भयानक विचार आ रहे थे जब कि पिताजी होली की खरीददारी करने में व्यस्त थे।
मिथिला में अनेक श्रद्धालुओं की मान्यता है कि इच्छा देवी हर पल विचरण करती रहती हैं , वे जिधर भी जाती हैं , लोगों की इच्छाएं पूरी कर देती हैं। अतः जो जैसा सोचता और बोलता है , वैसा ही पाता है। प्रसिद्ध लोकप्रिय कहावत "मंशे फल नियते बरक्कत " भी इस धारणा की पुष्टि करती है।
मिथिला में अनेक श्रद्धालुओं की मान्यता है कि इच्छा देवी हर पल विचरण करती रहती हैं , वे जिधर भी जाती हैं , लोगों की इच्छाएं पूरी कर देती हैं। अतः जो जैसा सोचता और बोलता है , वैसा ही पाता है। प्रसिद्ध लोकप्रिय कहावत "मंशे फल नियते बरक्कत " भी इस धारणा की पुष्टि करती है।
अत जब कल्पना ही करनी है तो अच्छी कल्पनाएं करें, आप जैसी कल्पना करेंगे, वैसा ही परिणाम आपको मिलेगा क्योंकि हर पल अपना दुःख रोने वालों के पास दुखों का पहाड़ आता हैं और सकारात्मक सोच रखने वालों और सकारत्मक बातें करने वालों के जीवन में अच्छी बातें होती रहती हैँ।
अगर आपको मेरी बात पर विश्वास नहीँ हो तो अपने कार्यालय, परिवार या मुहल्ले में दोनों प्रकार के पांच या दस लोगों की सूची बनाकर आप खुद परख सकते हैं।
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