विनोदी स्वभाव के होनेे के कारण हमलोग लोगों को अजीब नामों से पुकारते थे, जिनको सुनकर आप हँसते-हँसते लोट-पोट हो जायेंगे। एक ब्यक्ति ज्यादा बोलते थे, अतः उन्हें रेडियो लाल कहा जाता था। मैं किसी चीज की छोटी-छोटी बारीकियों पर गौर करता था, अतः मुझे कानूनी डायरी कहा जाता था। यह सब इतने प्यार से कहा जाता था कि हम सब इसका मजा लेते थे।
लोग इंसानों के बारे में अनेक उद्गार व्यक्त करते हैं। जैसे- "आप क्या चीज हो!"
" वह एकदम गाय है।"
" एक सांपनाथ है तो दूसरा नागनाथ।"
"वह एकदम बोतल है।"
व्यंग्य वाण चलाते समय हम किसी को जलेबी जैैसा सीधा भी बोल देते हैं।
प्रतीत होता है कि हमलोग इंसानों को सामान के रूप में देखने के आदी हो गए हैं।
The Arbinger Institute ने एक बहुत अच्छी पुस्तक,"लीडरशिप क्या आप खुद को धोखा दे रहें है" लिखी है। इस पुस्तक में उपरोक्त समस्या पर विस्तृत चर्चा की गयी है।
पुस्तक पढ़ने के बाद मैनें महसूस किया कि जाने-अनजाने मैं भी लोगों को वस्तुओं के रूप में देखता था।
अतः मैनें अपना नजरिया बदलने का प्रयास किया। अब मैं सोचता हूँ,"मेरे चारों तरफ मेरे जैसे ही इंसान हैं। उनकी आवश्यकताएं और भावनाएं मेरी ही जैसी हैं। मेरी ही तरह उनमें भी अच्छाइयां और कमियाँ हैं।"
सोच में इस बदलाव से लोगों के प्रति मेरी भावनाएँ और व्यवहार में सकारात्मक बदलाव आ गए। जिसके काफी अच्छे परिणाम आये हैं। मुझे अब अपने सहयोगियों से ज्यादा सहयोग मिलने लगा है और मेरे तनाव के स्तर में भी कमी आई है। मैंने लोगों की बुराइयों पर कुढ़ना बेहद कम कर दिया है।
क़्या आप भी लोगों के प्रति अपने नजरिये की जाँच करना चाहेंगे ?
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