प्रायः हम किसी से कुछ माँगते हुए काफी संकोच करते हैं कि वह
क्या कहेगा या क्या सोचेगा?
अधिकांश मामलों में यह डर एकदम गलत होता है। अतः अपनी बात पूरे आत्मविश्वास के साथ रखने का अभ्यास करें। सामान्यतः आपकी बात बिना किसी परेशानी के मान ली जायेगी।
'नहीं' सुनने के डर से मत घबरायें। अगर कोई सचमुच भी आपकी बात मानने से इंकार कर दे तो भी हिम्म्त नहीं हारें। अपनी बात के पक्ष में तर्क देकर उसे मनाने की हर संभव कोशिश करें। हो सकता है कि आपके तर्क से सहमत होकर वह आपकी बात मान ले।
महाभारत में श्रीकृष्ण ने दानवीर कर्ण को पाण्डवों के पक्ष में करने के लिये कुन्ती को भेजा। कुन्ती ने कर्ण को पुत्र कह कर सम्बोधित किया और ममता का हवाला दे कर पाण्डवों के पक्ष में करने के लिए काफी अनुनय-विनय किया। लेकिन कर्ण अपने घनिष्ठ मित्र दुर्योधन का साथ छोड़ने के लिये राजी नहीं हुआ यद्यपि कुन्ती ने यह आश्वासन ले ही लिया कि वह युद्ध में वह इन्द्रपुत्र अर्जुन के अलावा और किसी भ्राता का वध नहीं करेगा। श्रीकृष्ण ने भी हिम्मत नहीं हारी। सूर्य-पुत्र कर्ण के पास कवच और कुंडल रहने के कारण वह युद्ध में अपराजेय था। अतः अधर्म को पराजित करने के लिये श्रीकृष्ण ने इन्द्र की मदद ली। ब्राह्मण का वेश धारण कर इन्द्र को अनिच्छापूर्वक कर्ण से कवच-कुण्डल दान में मांगना पड़ा।
अपनी बात लोगों से स्वेच्छापूर्वक मनवा लेना एक कला है। इस कला में आप जितने पारंगत होंगे, सफलता उतनी ही गर्मजोशी से आपके क़दमों को चूमेगी।
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