Saturday, October 17, 2015

मानसिक वार्तालाप है आपका भाग्य विधाता?

अधिकांश  मनुष्यों  के  मनो -मस्तिष्क  में  जारी  स्वचालित संवाद न केवल उनके   व्यक्तित्व  बल्कि उनके भाग्य  को  भी  चुपके-चुपके  बदल  देती  है। 

नकारात्मक  मानसिक  वार्तालाप  काल्पनिक  होने  के  बावजूद  हमें तनाव से भर देते  हैं। 

 पंचतंत्र  की  कहानियों  में  एक  कंजूस  भिक्षुक की  कहानी  है;  वह  भिक्षा  से  प्राप्त तैयार  अनाज  में  से  थोड़ा  खाकर  शेष  मिट्टी  के घड़े  में  जमा  कर  लेता था।  एक  दिन  उसका  घड़ा  भर  गया  और वह अत्यंत  खुश  होकर काल्पनिक  खीर पकाने  लगा। 

 कल्पना में उसकी  शादी  एक  खूबसूरत और कुलीन कन्या से  हुई  और  उसे  एक  सुन्दर और  मनोहर  पुत्र-रत्न  की भी  प्राप्ति  हुई। पुत्र -प्यार  में   एक दिन  धर्मपत्नी  से  उसका झगड़ा  हो  गया और अत्यंत गुस्से  में आकर ब्राह्मण  देवता  ने  अपनी  अर्धांगिनी  को जोर  से  एक लात  मारा, लेकिन  अफ़सोस , उसकी  लात  सचमुच  चल गयी  और  जोर  से  मिट्टी  के  घड़े  पर  लग गयी।  ढप  की आवाज  के  साथ घड़ा  टुकड़े-टुकड़े  हो गया। उसमें  रखा सारा  तैयार  अनाज  तहस-नहस हो गया। बेचारे  गरीब ब्राह्मण  देवता  की वर्षों  की  जमा-पूँजी  एक  क्षण  मिट्टी  में  मिल  गयी। 

एक  बार एक मित्र से मेरा  भीषण झगड़ा  हो  गया; मैनें  भी उसे  सबक  सिखाने की  ठान  ली। मैं  हमेशा  योजना  बनाता  रहता  था  कि  कैसे  उससे  बदला  लूंगा ; कैसे  उसको  नाकों  चने  चबवाऊंगा  आदि  आदि।  इस  बीच  मेरा  ब्लड  प्रेशर  120 /80 से  बढ़कर  120 /95  हो  गया। मैं  अपने  चिकित्सक  से  मिलने  ही  जा  रहा  था , लेकिन  सौभाग्यवश  इसी  बीच  अपने  मित्र  से  मेरा समझौता  हो  गया।  मुझे  प्रतीत  हुआ  कि  मेरे  सिर  से  टनों  बोझ  उतर  गया है और  अगले  दिन  मेरा  ब्लड  प्रेशर पुनः   120 /80 हो  गया। 

 महात्मा  गांधी  कहते  थे , "शत्रुओं  से प्यार  करो। " वस्तुतः  इसमें  अपना  ही  भला  है  क्योंकि  शत्रुओं  के  लिए  हमारे  मन  में  जो  नफरत , घृणा  और  द्वेष   की  आग  जलती  रहती  है , उसमें  उनसे  ज्यादा  खुद  हम  ही  जलते  हैं।  अतः जब  मुझे  किसी  पर  गुस्सा  आता  है  तो  मैं  ईश्वर  से  उसे  सदबुद्धि और  अच्छे  कार्यों  में  सफलता  देने  के  लिए  प्रार्थना  करता  हूँ  या  कोई  स्लोगन  मन  ही  मन  दोहराता  हूँ।  (मेरे  सारे  लेखों  के शीर्षक  स्लोगन  का  काम  करते  हैं। ) अतः मैं  अपने  विरोधी  के  प्रति  घृणा  और  द्वेष भरे  विचार  के  चिंतन  से  प्रायः  बच  जाता  हूँ  और अपना  मानसिक  संतुलन  सही  रखता हूँ। लेकिन  गलत  लोगों  को  उचित  समय  पर  प्यार  से  उनकी  गलती  का एहसास  भी  जरूर  करा  देता  हूँ।  
कृपया  मेरा  लेख  'इंसान  या  सामान ' भी  पढ़ें। 


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