Thursday, October 29, 2015

वृद्धाश्रम या वृद्धमोहल्ला

बुढ़ापा  शेष  अन्य  चीजों  जैसा  ही  है , इसे  सफल  बनाने  के  लिये  आपको जवानी  में  ही  शुरुआत  करनी  पड़ती  है। --- थिओडोर  रूज़वेल्ट 

आजकल सोशल-मीडिया पर वृद्धाश्रम पर अत्यन्त भावनात्मक लेख पोस्ट किये जा रहे हैं, जिन्हें पढ़कर कलेजा मुँह को आ जाता है। यह एक बड़ी विडंबना है कि सोशल मीडिया पर भावनात्मक लेख लिखने वाले कुछ लोग अपनी वास्तविक जिंदगी में ठीक उसका उल्टा करते हैं। कुछ लोगों को तो  मैं अच्छी  तरह से  जानता हूँ , लेकिन नाम बताने की हिम्मत तो मे्रे पुरखे भी नहीं कर पाएंगे। इसमें अन्यथा लेने वाली कोई  बात भी  नहीं है क्योंकि ,"मुख में राम बगल में छुरी"वाली कहावत तो कोई नई  नहीं है।

ऐसे देखा जाए तो हमलोग भी वृद्ध-मोहल्ले में रहते हैं। हमारे मोहल्ले में अधिकांश युवक बंगलुरु या अन्य  बड़े शहरों  में काम करते हैं और उनके माँ-बाप यहाँ अकेले रहते हैं। कई बार बच्चे जिद करके हमें अपने साथ ले जाते हैं , लेकिन कुछ दिन बाद भागकर हमलोग फिर बैंकर्स कॉलोनी, मुजफ्फरपुर आ जाते हैं, क्योंकि वहां हमारा मन ही नहीं लगता है। ईश्वर की असीम कृपा से हमलोगों को बच्चों पर आश्रित नहीं रहना पड़ता है, लेकिन प्रौढ़ अवस्था या बुढ़ापा अकेले बिताना भी काफी चुनौतीपूर्ण कार्य है।

लोग प्रायः कहते हैं कि माँ-बाप बच्चों की इतने शौक से परवरिश करते हैं, लेकिन बच्चे अपने माँ-बाप को दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंकते हैं। वस्तुतः बच्चे इतने मनोहर होते हैं कि लोग दूसरों के बच्चों से खेलने में भी आनंदित हो जाते हैं। कोई बच्चा आपको देखकर जबरदस्ती सम्मान नहीं मांगता है और न ही वह आपसे  किसी की शिकायत करता है, वह सिर्फ आपको देखकर हँसता-मुस्कराता है। मेरे पड़ोस की बच्ची जब भी मुझे देखती है, हँसते हुए मेरी तरफ दौड़ती है, मैं भी उसे गोद में उठाकर प्यार करता हूँ और थोड़ी देर के लिए अपना तनाव भूल जाता हूँ। वस्तुतः बच्चे अपने-आपको इतना हल्का बना लेते हैं कि हर कोई उन्हें उठा लेता है। वे अपने माँ-बाप को कभी यह नहीं कहते कि आपने मुझे पैदा किया है तो आपको मेरा लालन-पालन करना ही पड़ेगा। अर्थात वे अपना अधिकार नहीं मांगते हैं, बल्कि अपनी प्यारी छवि से सब काम करा लेते हैं।

 मेरे मित्र अरुण जी के पिता जी अत्यंत बूढ़े थे, जब भी मैं अरुण जी से मिलने जाता था, चाचा जी के लिए पान लेकर जाता था, क्योंकि वे पान के बहुत शौक़ीन थे  और  बहुत खुश होते थे, थोड़ी देर मैं उनके पास बैठकर बात करता था। वे मेरे परिवार के सदस्यों के कुशल-क्षेम पूछते थे।  कभी भी उन्होंने अपने बेटे या बहू की  शिकायत नहीं की। अगर शिकायत करते तो शायद मैं उनके पास बैठ भी नहीं पाता। कभी उनके बच्चों या बहू ने भी उनकी शिकायत नहीं की। यद्पि बुढ़ापा काफी कष्टकारी होता है, फिर भी उन्होंने अपने मन में दूसरों के प्रति खटास नहीं पाली और काफी संतुष्टि के साथ इस संसार को अलविदा कहा। मैं ऐसे बुजुर्गों को भी जानता हूँ , जो हर बात में मीन-मेख निकाल कर न सिर्फ अपनी जिंदगी नरक बना लेते हैं, बल्कि पूरे परिवार के लिए भारी मुसीबत बन जाते हैं।
मुझे तो श्रवण कुमार की कहानी पढ़कर बड़ा अटपटा लगता है। श्रवण कुमार माँ-बाप की भक्ति के लिए आदर्श थे। आदर्श तो लाखों में एक होता है तभी उसकी उपमा दी जाती है, अगर श्रवण कुमार लाखों में एक थे तो तब शेष बच्चे कैसे थे ? और क्यों  वर्षों  से  यह  कहावत चली  आ  रही  है  कि  बाप  बनकर  कोई  किसी  से  कुछ  नहीं  ले  सकता  है। 

 बेवफाई एक शाश्वत सत्य है।  अपने शरीर से ज्यादा प्यारा कौन हो सकता है, बचपन से इसका हम कितना ख्याल रखते हैं, बढ़िया से बढ़िया भोजन कराते हैं, सुन्दर वस्त्र पहनाते हैं, इत्र, क्रीम और महंगे साबुन लगाते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा कष्ट भी हमें अपना शरीर ही देता है।अनेक प्रकार की बीमारियों को पालकर शरीर  हमें कष्ट देता है और  बुढ़ापे में  भी  साथ नहीं  देता है। एक दिन तो  यह पूरी तरह जवाब दे देता है।

   ईसा मसीह ने दस कोढ़ियों को ठीक कर दिया, उनमें से सिर्फ एक उन्हें धन्यवाद देने आया, शेष नौ ने इस  छोटी  सी  औपचारिकता  को  निभाना भी उचीत नहीं समझा। तात्पर्य यह है कि यह निर्मम संसार युगों-युगों से ऐसा ही है और ऐसा ही रहेगा। बेहतर है कि इस संसार के अनुसार हम अपने-आप को ढाल लें। 
 बिंदास जीने का नाम ही जीवन है।  अतः बच्चों के साथ रहें, वृद्धाश्रम में या वृद्धमोहल्ले में रहें, अपने अस्तित्व से दूसरों को खुश रखें, उनपर कम से कम बोझ बनें और बिंदास जियें।

Saturday, October 17, 2015

मानसिक वार्तालाप है आपका भाग्य विधाता?

अधिकांश  मनुष्यों  के  मनो -मस्तिष्क  में  जारी  स्वचालित संवाद न केवल उनके   व्यक्तित्व  बल्कि उनके भाग्य  को  भी  चुपके-चुपके  बदल  देती  है। 

नकारात्मक  मानसिक  वार्तालाप  काल्पनिक  होने  के  बावजूद  हमें तनाव से भर देते  हैं। 

 पंचतंत्र  की  कहानियों  में  एक  कंजूस  भिक्षुक की  कहानी  है;  वह  भिक्षा  से  प्राप्त तैयार  अनाज  में  से  थोड़ा  खाकर  शेष  मिट्टी  के घड़े  में  जमा  कर  लेता था।  एक  दिन  उसका  घड़ा  भर  गया  और वह अत्यंत  खुश  होकर काल्पनिक  खीर पकाने  लगा। 

 कल्पना में उसकी  शादी  एक  खूबसूरत और कुलीन कन्या से  हुई  और  उसे  एक  सुन्दर और  मनोहर  पुत्र-रत्न  की भी  प्राप्ति  हुई। पुत्र -प्यार  में   एक दिन  धर्मपत्नी  से  उसका झगड़ा  हो  गया और अत्यंत गुस्से  में आकर ब्राह्मण  देवता  ने  अपनी  अर्धांगिनी  को जोर  से  एक लात  मारा, लेकिन  अफ़सोस , उसकी  लात  सचमुच  चल गयी  और  जोर  से  मिट्टी  के  घड़े  पर  लग गयी।  ढप  की आवाज  के  साथ घड़ा  टुकड़े-टुकड़े  हो गया। उसमें  रखा सारा  तैयार  अनाज  तहस-नहस हो गया। बेचारे  गरीब ब्राह्मण  देवता  की वर्षों  की  जमा-पूँजी  एक  क्षण  मिट्टी  में  मिल  गयी। 

एक  बार एक मित्र से मेरा  भीषण झगड़ा  हो  गया; मैनें  भी उसे  सबक  सिखाने की  ठान  ली। मैं  हमेशा  योजना  बनाता  रहता  था  कि  कैसे  उससे  बदला  लूंगा ; कैसे  उसको  नाकों  चने  चबवाऊंगा  आदि  आदि।  इस  बीच  मेरा  ब्लड  प्रेशर  120 /80 से  बढ़कर  120 /95  हो  गया। मैं  अपने  चिकित्सक  से  मिलने  ही  जा  रहा  था , लेकिन  सौभाग्यवश  इसी  बीच  अपने  मित्र  से  मेरा समझौता  हो  गया।  मुझे  प्रतीत  हुआ  कि  मेरे  सिर  से  टनों  बोझ  उतर  गया है और  अगले  दिन  मेरा  ब्लड  प्रेशर पुनः   120 /80 हो  गया। 

 महात्मा  गांधी  कहते  थे , "शत्रुओं  से प्यार  करो। " वस्तुतः  इसमें  अपना  ही  भला  है  क्योंकि  शत्रुओं  के  लिए  हमारे  मन  में  जो  नफरत , घृणा  और  द्वेष   की  आग  जलती  रहती  है , उसमें  उनसे  ज्यादा  खुद  हम  ही  जलते  हैं।  अतः जब  मुझे  किसी  पर  गुस्सा  आता  है  तो  मैं  ईश्वर  से  उसे  सदबुद्धि और  अच्छे  कार्यों  में  सफलता  देने  के  लिए  प्रार्थना  करता  हूँ  या  कोई  स्लोगन  मन  ही  मन  दोहराता  हूँ।  (मेरे  सारे  लेखों  के शीर्षक  स्लोगन  का  काम  करते  हैं। ) अतः मैं  अपने  विरोधी  के  प्रति  घृणा  और  द्वेष भरे  विचार  के  चिंतन  से  प्रायः  बच  जाता  हूँ  और अपना  मानसिक  संतुलन  सही  रखता हूँ। लेकिन  गलत  लोगों  को  उचित  समय  पर  प्यार  से  उनकी  गलती  का एहसास  भी  जरूर  करा  देता  हूँ।  
कृपया  मेरा  लेख  'इंसान  या  सामान ' भी  पढ़ें। 


Saturday, October 10, 2015

WHERE AND HOW TO FIND PERFECT PEOPLE?

 A smart young man was searching a perfect bride; after making marathon efforts he found one, but alas, the poor chap was not a perfect groom in the girl's eyes.
    Even Shri Ram, and Shri Krishna had weaknesses. Shri Ram killed Bali by hiding. Shri Krishna had to flee from a fight. Therefore he is lovingly called Ranchhor too.
Hitler was a charismatic personality, a great orator, hard working honest leader as well as a visionary. He led  Germany successfully in the great depression. He worked wholeheartedly for his country.
 Hitler had the capability of becoming a historic personality but his hatred, against Jews, gays, etc., caused large-scale genocide. He became responsible for killing 5.5 million Jews and many million others. So despite all his talents, he is branded the biggest villain in the world.
None is perfect. Let's adjust and work with imperfect human beings.  Mahatma Gandhi fought freedom struggle successfully with illiterate masses. Shri Ram killed Ravan and captured Shri Lanka with the army of monkeys.